गज़ल

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गज़ल

मानव

कुछ जानबूझ के कुछ अनजाने में किया करते हैं हम उनको कैसे कह दे अकेले ही जिया करते हैं फितरत है दुनिया की हर रोज

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सफर

खुशी-खुशी बीत जाए जिंदगी का सफर कौन यहां रहने आया जग में जो आया वही भरमाया कौन यहां रहने आया कल्पना क्या करें सभी सरताज

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वक्त

वक्त ने बनाया मुझे वक्त से दीदार करूं वक्त के है हक में मुझे चाहे की इंकार करे समय का फैसला जिसका श्रृंगार करू जो

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दीवाने हैं

आप शम्आ हो और हम परवाने हैं आये हम आप पे ही तो मर जाने हैं आप जब भी जलोगे जहाँ जानेमन हम भी जलने

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गज़ल

उनको हम भी प्यार करेंगे क़िस्तों में

उनको हम भी प्यार करेंगे क़िस्तों में । मर मर कर हम ख़ूब जियेंगे क़िस्तों में । बोझिल पंखों में अब भी काफ़ी दम है

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गज़ल

निगहबानी हमें करनी है, ख़ुद ही अपने गुलशन की

तेरी ख़ातिर चढ़ा देंगे वतन हम भेंट तन मन कीनहीं चिंता करेंगे अपने सुख की अपने जीवन की निपटने के लिए दुश्मन से काफ़ी बाँकपन

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