गज़ल

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तेरी नादानियाँ- गज़ल

मैं मेरी तन्हाइयाँ थीं और थीं ख़ामोशियाँ सिर्फ़ इतना ही बचा था तेरे मेरे दरमियाँ गर तुझे मालूम होतीं इश्क़ की गहराइयाँ तो समझता क्यूँ

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गज़ल

यूंँ ज़िंदगी में

यूंँ ज़िंदगी में गलतियांँ दोहराई नहीं जाती, यूंँ बात सभी की दिल से लगाई नहीं जाती। परिंदे हैं, उड़ने दो इन्हें उन्मुक्त गगन में ,

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गज़ल

किससे किसकी यारी है

किससे किसकी यारी है दुनिया कारोबारी है ! जाल बिछा है, दाने हैं दुबका वहीं शिकारी है ! मंचों पर जोकर काबिज प्रहसन क्रमशः जारी

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गज़ल

दंश

अशेष अनुराग से गुड़िये को सजाती तुम बिसर जाती हो खाना-पीना बुदबुदाती है माँ झिड़कियाँ सुनाती है बेपरवाह, तन्मय तुम क्या कुछ गाती-गुनगुनाती हो रचाती

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गज़ल

एहसास

है जिंदगी तू बनू कहानी में सुनती रहे तू ऐसी बानी मैं गुन -गुनाऊ मैं बन जाए गीत तू साज हो धड़कन मेरी हो जाए

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गज़ल

मानव

कुछ जानबूझ के कुछ अनजाने में किया करते हैं हम उनको कैसे कह दे अकेले ही जिया करते हैं फितरत है दुनिया की हर रोज

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