एक पाती फिर हमारे नाम लिखना !
वह नदी का किनारा,वह शाम लिखना एक पाती फिर हमारे नाम लिखना ! अभी तो आग़ाज़ को दें पुख़्तगी हम अभी से क्या बैठकर अंजाम
वह नदी का किनारा,वह शाम लिखना एक पाती फिर हमारे नाम लिखना ! अभी तो आग़ाज़ को दें पुख़्तगी हम अभी से क्या बैठकर अंजाम
बिक गये जो वस्तुओं की भाँति होकर चरण-चाकर रह गये जन के मन में,यश-गगन में आज हैं,कल भी रहेंगे आँधियों का वेग अपने वक्ष पर
माँगना न गीत अब गुलाब के ज़िंदगी की हर तरफ बबूल ! सुबह-शाम पेट का सवाल है बतिआयें प्यार, यार!किस तरह? पतझरी उदासी है रू-ब-रू
जब हवाओं में है आग की-सी लहर देखिए, खिल रहे किस क़दर गुलमोहर ! हौसले की बुलन्दी न कम हो कभी आदमी के लिए ही
क्रान्ति-वेला की ललित ललकार है तुलसी शारदा की बीन की झंकार है तुलसी । शील में देवापगा की लहर की मानिन्द शक्ति में गर्जित जलधि
बटोही जैसे जुगाता है गठरी चिड़िया अंडा जुगाती है जुगाये हमने बीज बोया-लगाया खेतों में कि लहलहायेगी फसल बालियाँ खनकेंगी खिलखिला उठेगा खलिहान फ़कत बीज
जाने क्यों अकसर लगता है अपनों से ही डर लगता है! कठिन समय है, दग़ाबाज भी बातों में दिलबर लगता है! हासिल है जो सीप-शंख-सा
सेमल के फूल लाल -लाल , कितने लाल ! रंग दिये फागुन ने मौसम के गाल ! झर गया पुरानापन पीत पत्र संग रंग-रूप नया-नया,नयी
चाररोजा ज़िन्दगी में क्यों भला तकरार हो?जितने पल हासिल हमें हैं प्यार केवल प्यार हो । सजल हों कादंबिनी-सा ,सरल शिशु-मुस्कान- सावचन में मन हो
तुम्हारे साथ आता है एक मौसम मेरे पास रूप-रंग-सुवास का तृप्ति ,विश्वास का जीवन के गहरे स्वीकार का मौसम ! मौसम अछोर संवादों का मोरपंखी