
मुद्दतें गुज़र गईं ख़ुद से मिले हुए
फिर मुद्दतें गुज़र गईं ख़ुद से मिले हुए, मैं ख़ुद में खो गया था तुझे सोचते हुए। और आप हैं कि हाथ लगाने पे आ
फिर मुद्दतें गुज़र गईं ख़ुद से मिले हुए, मैं ख़ुद में खो गया था तुझे सोचते हुए। और आप हैं कि हाथ लगाने पे आ
मेरी ये बात लोगों को नहीं भाती कि मैं अक्सर, जो वाबस्ता हो तुझसे ऐसा क़िस्सा छेड़ देता हूँ। ये दुनिया वाले ऐसे ही मुझे
वो जिसके वास्ते जनमों जनम ठहरा रहा होगा उसी के आने जाने पे कड़ा पहरा रहा होगा बहारों की ये ख़्वाहिश उसके भी सीने में
मान लेंगे वो बुरा तो मुस्कराना छोड़ दें किस सबब उनकी जलन में गीत गाना छोड़ दें अपना तो हर धर्म ईमां हर चलन है
छिप छिप के तीर दिल पे चलाते हो किसलिए यूँ दुश्मनी मेरे से निभाते हो किसलिए जाना ही है तो पास ही आते हो किसलिए
दूर तुमसे हम हैं क्यूँ दुख भरे आलम हैं क्यूँ पल ख़ुशी वाले बता हो गए बेदम हैं क्यूँ बाँटते हैं जो हँसी आँखें उनकी
हर दर पर सर झुके ये मुझे मंजूर नही है मेरे माँ से खुबसूरत जन्नत के हूर नही है मिली है मंजिल मुझे मेरे माँ
बस गए जो दिल में आके दिल के वही मीत थेदिल से जो निकल गए ओ ढोग के प्रतीक थेस्वार्थ भाव जब उगा भावना के
दूरी बहुत है ज्यादा क्या रब मेरे मकां की नज़रे करम न अब तक मेरे प क्यों अयां की चर्चा हमारा हरसू क्यों आम हो
तेरे आगोश में ज़िस्म जलता रहा मौत की राह पर मै तो चलता रहा तेरे यौवन की आतिश को छू छू के मैं मोम जैसा