
तू मुझको, अपना के देख
तू मुझको, अपना के देख। घर मेरा महका के देख। दर्द हवा हो जाएगा, ज़ख्मों को सहला के देख। यार बढ़ेंगे तेरे भी, दौलत तू
तू मुझको, अपना के देख। घर मेरा महका के देख। दर्द हवा हो जाएगा, ज़ख्मों को सहला के देख। यार बढ़ेंगे तेरे भी, दौलत तू
वह मेरे घर, आई कल। देख मुझे, शरमाई कल। मुद्दत के हम बाद मिले थे, फिर भी वो, घबराई कल। लिखता हूं जो चुन चुनकर,
महीनों में ये सावन का महीना दर्ज़ कर देना। बिना उनके गुज़ारा था बुझा-सा दर्ज़ कर देना। तमन्ना टूट कर बिखरी, मुहब्बत का भरम टूटा,
किसी भी झूठे फसानों से, ख़ून बहता है। हक़ीक़त अब कि तानों से, ख़ून बहता है। छिपाना भी नहीं मुमकिन जमाने से शाय़द, कि कातिलों
सनातन को मापने के तराज़ू निकल पड़े। ये देखकर मेरे भी अब आंँसू निकल पड़े। मासूम हाथ में तो थमा दे क़लम कोई, ऐसा न
अभी तो उसके इतराने के दिन हैं। किसी के ख़्वाब में आने के दिन हैं। मुहब्बत की कसौटी से हमारे, गुज़र कर बस ख़रे आने
मुझे इश्क़ में और क्या चाहिए था। फकत रहनुमा, आप सा चाहिए था। इशारों इशारों में मुझको बुलाकर, उसे हाले दिल, पूछना चाहिए था। हुई
वो इशारा कर रहा था और कुछ। अंत में निकला तमाशा और कुछ। देखिए हमको यहांँ पर क्या मिला, चाहते थे हम भी पाना और
झूठ बताया जा सकता है। शहर जलाया जा सकता है। पल दो पल का साथ हमारा, ज़श्न मनाया जा सकता है। अपनों पर बन आई
देखकर आज काग़ज़ी चेहरे। याद आए थे शबनमी चेहरे। अब कहांँ दिखती हैं हंँसी सूरत, भूल बैठे हैं सादगी चेहरे। अपनों को भूलते सभी जा