शेर
इबादत रब की और सूरत यार की हो सजदा रब का और रस्म प्यार की हो आशिक़ों के मज़हब का क्या कहना ज़िक्र रब का
इबादत रब की और सूरत यार की हो सजदा रब का और रस्म प्यार की हो आशिक़ों के मज़हब का क्या कहना ज़िक्र रब का
अब हमारे इश्क़ के ,खाली खज़ाने हो गएअब नहीं चलते हैं ,सिक्के जो पुराने हो गए जो हमें देखा किये सड़कों पे मुड़ मुड़ के
वक़्त ए रुख़सत ये सिलसिला होगा, तुझसे दिल खोल कर गिला होगा बेवफ़ा हो गया है शायद वो, मुझसे बेहतर कोई मिला होगा, एक मानूस
आशिक़ी जब दरमियां बढ़ने लगी बिन तेरे तन्हाईयां बढ़ने लगी आस है तेरे मिलन की इसलिए दिन-ब-दिन बेताबियां बढ़ने लगी ज़िक्र तेरा महफिलों में जब
मेरी तनहाई का सहारा हैये नदी का जो इक किनारा है मन करे जब भी लौट आना तुमदिल मेरा आज भी तुम्हारा है मेरी आंखो
इश्क़ में ज़िन्दगी फ़ना होगी कारगर अब मेरी दुआ होगी आज फिर दिल मेरा ये टूटा है उसने ग़ैरों से की वफ़ा होगी पास उसके
तुम मेरे ख़्वाबों में आना छोड़ दो इश्क़ मेरा आज़माना छोड़ दो मैं बुलाऊं जब तुम्हें आया करो करना मुझसे अब बहाना छोड़ दो ‘मन्तशा’
तुम्हारा जब से सजदा कर लिया है ये अपना वक्त अच्छा कर लिया हैं तुम्हारे नाम की मालाएं जप कर अजब दिल ने तमाशा कर
होके तुझसे जुदा दूर जाना नहीं दिल का तेरे सिवा कुछ ठिकाना नहीं । रोज़ आओगे तुम मुझसे मिलने सनम मैं सुनूंगी कोई भी बहाना