अनूप अंबर
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अनूप अंबर

नाम : अनूप अंबर जन्म तिथि:01जनवरी 1991 पिता का नाम:राजेश कुमार पता: फर्रुखाबाद उत्तर प्रदेशइनके नौ साझा संकलन प्रकाशित हो चुके हैं, पच्चीस अर्थलोगी प्रकाशित हो चुकी है, विभिन्न मंचों से 150 से अधिक सम्मान पत्र प्राप्त है, इनकी विभिन्न रचनाएं पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है,ये कई साहित्य पटलों पर सक्रिय है ।। Copyright@अनूप अंबर / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

फिर आया पतझड़ का मौसम

आई थी बहार साखों पर,कली कली मुस्काई थी, हरे रंग की चादर ओढ़ के,पात_पात इतराई थी ओस की बूंदे गिरी पातों पर,तरु की सोभा बढ़ाई

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पुष्प और कांटे

आज गुलाब बहुत घबराया है, सोंचता है क्यूं सुगंध पाया है। जन्म से कांटे रहे साथ में, उम्र भर बस दर्द ही पाया है।। फिर

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भारत के रखवाले हैं

भरत से पड़ा नाम भारत का, हम उस भारत के रखवाले हैं। अपनी पर जो यदि आ जाए, तो हम इतिहास बदलने वाले है।। हम

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बेटियां

देखो नित उड़ान अब,भरती है बेटियां, कहां किसी के रोके, रुकती है बेटियां । अब तो अम्बर भी छोटा, लगने लगा है, कुछ इस तरह

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कलम हमारी बोली

कलम हमारी बोली कविवर, मुझे ये क्यूं नही बताते हो । एक वर्ष में तीन दिवस क्यूं ? तुम देशभक्ति जगाते हो ।। इस वतन

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ऐसे हम आजादी पाए

कतरा _कतरा रक्त बहाया, तन मन मातृ भूमि पर वार दिया । धन्य धन्य आजादी के दीवाने, ऐसे जन्मभूमि से प्यार किया ।। मंगल पांडे

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आया बसंत झूम कर

आया बसंत झूम कर देखो, तरु नव पलल्व लगे है पाने । दिनकर को फिर तेज मिल गया, अब शीत को लगे है हराने ।।

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बेजुबान की पीड़ा

बेजुबान है तो क्या कोई जज्बात नही है, मां के पेय पर शिशु का क्या अधिकार नहीं है। कौन सा मुंह दिखलोगे,दुनियां बनाने वाले को,

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विनाश की झांकी

कभी भूमि फट रही है,कभी धरती हिल रही है देखो अब विनाश की,झांकी भी दिख रही है। भूस्खलन, तूफान,बाढ़ से,सब त्राहि माम कर रहे है,

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रघुपति से जीत न पाऊंगा

मेघनाद उदास बहुत है,रघुपति से जीत न पाऊंगा, पिता वचन स्वीकार मुझे,लड़ते लड़ते मर जाऊंगा, इंद्र न मुझसे जीत सका,फिर तपस्वी कैसे जीत रहे, ये

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