भारतीय ज्ञान परंपरा
किसी भी सभ्यता या संस्कृति का उत्थान-पतन उसकी आर्थिक स्थिति और राजनैतिक स्थिति नहीं होती बल्कि ज्ञान परम्परा होती है। भारतीय संस्कृति ने हमेशा ही
किसी भी सभ्यता या संस्कृति का उत्थान-पतन उसकी आर्थिक स्थिति और राजनैतिक स्थिति नहीं होती बल्कि ज्ञान परम्परा होती है। भारतीय संस्कृति ने हमेशा ही
वो बचपन और माँ का प्यार, बाबुल का आँगन और वो दुलार। पापा से पैसे की ज़िद करना, माँ का हर बात पर समझाना। स्कूल
कहा जाता है की 84 लाख योनियों को पार करने के बाद मनुष्य का जन्म हमें प्राप्त होता है। मनुष्य जन्म मिलना ही एक सौभाग्य
संकल्प की शक्ति अपार, मन के भीतर बहती धार। जीवन की हर कठिन घड़ी में, संकल्प बने दीपक की ज्योति। हर मुश्किल को सरल बना
“पहचान” शब्द सुनते ही मन में सवाल उठता है – आखिर हमारी पहचान क्या है? क्या यह केवल हमारा नाम है, जो हमें दूसरों
बेटियां, चंचल, कोमल, प्यारी सी, घर के आंगन को मेहकाती, फुलवारी सी। चहकती रहती है घर में दिन भर, गौरैया जैसी प्यारी सी। मत छीनो
स्वच्छता है धर्म हमारा, इससे बनता जीवन सारा। घर हो या गलियाँ, साफ रखो, गंदगी को सबसे दूर करो। नदियों में कचरा मत डालो, प्रकृति
आज का विषय है कि क्या सीधा और सरल व्यक्तित्व होना भी एक चुनौती है। मेरा जवाब है; हाँ। प्रत्येक मनुष्य का स्वभाव भिन्न भिन्न
जिंदगी का सफर आसान नहीं होता। यहां हर कोई अच्छा इंसान नही होता। अकेले है चलना पड़ता है सब राहों पर, यहां कोई किसी
छोटी सी है मेरी अभिलाषा, छोटा सा घर हो मेरा, ऊपर प्यारा सा नेम प्लेट मेरे नाम का। घर के बाहर बड़ा सा बगीचा