संतोष सिंह 'अकेला'
हिन्दुस्तान के घाती पर
ऐलान करो अब लाल किले से,चढ दुश्मन की छाती पर।नहीं चलेगा मुल्क हमारा, देशद्रोहियों की थाती पर।दुश्मन देश के हित में जिसकी उमड़ रही हो
दर्द मुझको यहां मिला है बहुत
दर्द मुझको यहां मिला है बहुत। जिंदगी ही तो इक सजा है बहुत। दिल लगाने की ज़िद करे न कोई, घाव मेरा अभी हरा है
हमें दुनिया भी चाहिए
दुनिया को हाल ही नहीं हुलिया भी चाहिए। जन्नत के साथ में हमें दुनिया भी चाहिए। तन कर खड़ा रहा जो कहीं पर मिला नहीं,
लगता है अब दहशत कम है
लगता है अब दहशत कम है। या योगी को फुर्सत कम है। बच्चों को ही आगे कर दो, हाथों में अब पत्थर कम है। बाज
तू मुझको, अपना के देख
तू मुझको, अपना के देख। घर मेरा महका के देख। दर्द हवा हो जाएगा, ज़ख्मों को सहला के देख। यार बढ़ेंगे तेरे भी, दौलत तू
वह मेरे घर, आई कल।
वह मेरे घर, आई कल। देख मुझे, शरमाई कल। मुद्दत के हम बाद मिले थे, फिर भी वो, घबराई कल। लिखता हूं जो चुन चुनकर,
सावन का महीना दर्ज़ कर देना
महीनों में ये सावन का महीना दर्ज़ कर देना। बिना उनके गुज़ारा था बुझा-सा दर्ज़ कर देना। तमन्ना टूट कर बिखरी, मुहब्बत का भरम टूटा,
झूठे फसानों से
किसी भी झूठे फसानों से, ख़ून बहता है। हक़ीक़त अब कि तानों से, ख़ून बहता है। छिपाना भी नहीं मुमकिन जमाने से शाय़द, कि कातिलों
नफ़रत के सिलसिले को हमें तोड़ना है तो
सनातन को मापने के तराज़ू निकल पड़े। ये देखकर मेरे भी अब आंँसू निकल पड़े। मासूम हाथ में तो थमा दे क़लम कोई, ऐसा न