शेषमणि शर्मा 'शेष'
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शेषमणि शर्मा 'शेष'

पिता का नाम- श्री रामनाथ शर्मा, निवास- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश। व्यवसाय- शिक्षक, बेसिक शिक्षा परिषद मीरजापुर उत्तर प्रदेश, लेखन विधा- हिन्दी कविता, गज़ल। लोकगीत गायन आकाशवाणी प्रयागराज उत्तर प्रदेश। Copyright@शेषमणि शर्मा 'शेष'/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

वो यकता है मगर लगता कई है

वो यकता है मगर लगता कई है। हुनर उसमें ये देखो वाकई है।। रकीबे बज़्म में क्या आप दिखे, दिले नादान को फुर्सत हुई है।।

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मनवा प्रिय दर्शन की आस

मनवा प्रिय दर्शन की आस। कितने सावन बीत गये हैं मिटी न अजहूं प्यास।। माया ठगिनी है भरमावत अंत में करे उदास। मृगतृष्णा न मिटी

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आभूषण

शीषफूल मुक्ताजाल चूड़ामणि मांगटीका, कुमकुम बिंदी खेलड़ी सजावति शीश कामिनी। कर्णफूल पीपलपत्रा छैलकड़ि कोकरु बाली, झेला झुमकी माकड़ी झमकावति गजगामिनी। चूनी नासामोती ठुमकी नथ बजट्टी

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गमे रुसवाई

गमे रुसवाई ज़ख्म दर्द-ए- जलन क्या है। ऐ नये साल बता तुझमें नयापन क्या है।। चांद को छूने की उम्मीदें पाल ली हमने, पूरी जो

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नववर्ष

नव वर्ष का नवल प्रभात अति सुखद सुवास हो। निर्झरिणी बहे स्नेह की जन जन में प्रेम प्यास हो।। प्रिय से मिलन की चाह हो,

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अब तैयारी है

हिज्रे तन्हाई शब गुजारी है। आ भी जाओ के अब तैयारी है। शुक्रिया कहूं तो मैं कैसै कहूं, अभी उनकी बहुत उधारी है। दिल तो

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तनहा तनहा सफ़र लगने लगा है

तनहा तनहा सफ़र लगने लगा है। दिले नादान क्या कहने लगा है।। गये क्या बज़्म से वो रूठ करके, इक दरिया अश्क का बहने लगा

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एक दिन

करले तू इस जगत में सद्व्यवहार एक दिन। जाना पड़ेगा छोड़कर संसार एक दिन।। विषयादि त्रिगुण फंद अविद्या विकार में, स्व ढका मन बुद्धि चित्त

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मुस्कराने लगे हैं

आजकल मुस्कराने लगे हैं कुचल कर फूल सा दिल मेरा वो, ‌ आजकल मुस्कराने लगे हैं। जिनसे मतलब नहीं था कभी भी, ‌ ‌ उनकी

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