बजरंगी लाल
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बजरंगी लाल

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सुनता रहा मैं

सुनता रहा मैं उसकी बोला न ताव में,हर मोड़ पर रहा मैं उसके प्रभाव में।फिर भी मिली है मुझको दर्दे जुदाइयां,जाने वही क्या चल रहा

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लंका जलाइए(घनाक्षरी)

रावण दुष्ट पापी नीच अथवा कुकर्मी था,उसकी वो सजा पाया,उसे भूल जाइए।आज की दशा को देखो,गली गांव नुक्कड़ में,उठेगी नजर यदि,रावण ही पाइए।होती है गलानि

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ज्ञान दायिनी हे मातु(घनाक्षरी)

ज्ञान दायिनी हे मातु,वीणा पाणि सरस्वती,दया दृष्टि थोड़ी सी तो,मुझपे दिखाइए।मैं अजान बालक हूं चरणों में मातु तेरेज्ञान चक्षु खोल मेरो मन हरसाइए।धवल वस्त्र धारिणी

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हे दीनबंधु(घनाक्षरी)

हे दीनबंधु कृपा सिंधु वीर बलदाऊ कै,विनती हमारी प्रभु आप सुन लीजिए।जगत के पाप हरो सबके संताप हरो,आइए प्रभु जी फिर अवतार लीजिए।गीता वाला ज्ञान

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कब तक पाठ शान्ति का हमको

कब तक पाठ शान्ति का हमको,अभी पढ़ाया जायेगा।कब तक इन पत्थरबाजों से,हमको पिटवाया जायेगा।।कब तक हम अपने ही घर में,अत्याचार सहें बोलो।कब तक करते रहें

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चाहतें थीं दिल में जो

चाहतें थीं दिल में जो भी,जता न पाए हम कभी,मन तुम्हारा हो गया पर,बता न पाए हम कभी।इश्क़ का इज़हार कर लूं, तुमसे,दिल करता रहा,पर

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करें बाँहों में बल

करें बाँहों में बल पैदा,सहारा है नहीं कोई, ज़माने में कहीं देखो,तुम्हारा है नहीं कोई| हुई हैवान दुनिया है,मरी इन्सानियत सबकी, खुद ही में डूबकर

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जो बदन थी

जो बदन थी दोहरी, इकहरी हो गई, ग़मों की धूप से हट जा, दुपहरी हो गई| प्यार उसका अभीतक, भूला नहीं पाया, ऐसा लगता है

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तन-मन-धन(घनाक्षरी)

तन-मन-धन सब,वार जिस दिन आप,काम कोई करने को,आगे बढ़ जाते हैं।पग-पग पर जब,आ जाए चुनौती कोई,फिर भी न पग आप,पीछे को हटाते हैं।आती परेशानियां हों,

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