मधुआ (जयशंकर प्रसाद)
आज सात दिन हो गये, पीने को कौन कहे-छुआ तक नहीं! आज सातवाँ दिन है, सरकार!तुम झूठे हो। अभी तो तुम्हारे कपड़े से महँक आ
आज सात दिन हो गये, पीने को कौन कहे-छुआ तक नहीं! आज सातवाँ दिन है, सरकार!तुम झूठे हो। अभी तो तुम्हारे कपड़े से महँक आ
वह पचास वर्ष से ऊपर था। तब भी युवकों से अधिक बलिष्ठ और दृढ़ था। चमड़े पर झुर्रियाँ नहीं पड़ी थीं। वर्षा की झड़ी में,