कैसी है माया(दोहें)
कैसी है माया तिरी , कैसा है ये जाल । बदन गठरिया पाप की , प्राणों में सुकताल । या तो खुद प वार करे
कैसी है माया तिरी , कैसा है ये जाल । बदन गठरिया पाप की , प्राणों में सुकताल । या तो खुद प वार करे
सांसों का दरिया बहे , बंजर तन के बीच । पुण्यों की रसधार से , चल कर्मों को सींच । प्यारी सच्चाई नहीं , प्यारा
आसमानों का परिन्दा कर दिया । वक़्त ने हमको अकेला कर दिया । यूं किसी ने चीर कर मेरा ज़हन । रूह के जाने का
प्रेम नदी रस की भरी , सूखे दोनों तीर । तुम भी वहां अधीर हो , मैं भी यहां अधीर । प्रेम सदा ही नूतन
बरसों से बेनूर है , खुशियों का फानूस । किस्मत होती जा रही , दिन पर दिन कंजूस । दुनिया के बाज़ार में , मैं
वक़्त की टहनी पे अब भी खिल रहा हूँ मैं । राह तेरे लौटने की देखता हूँ मैं । बिन तेरे कैसे जिऊँगा सोचता हूँ
तीर जितने उसने मारे सब निशाने पर लगे । ज़ख्म सब के सब पुराने ज़ख्म से बेहतर लगे । हो गया है जाने मुझको क्या
एक पत्थर और मारो अब तलक़ ज़िंदा हूँ मैं । या कोई ख़ंजर निकालो अब तलक़ ज़िंदा हूँ मैं । है बदन छलनी मगर इन
धूप का पर्वत खड़ा है सामने । और लम्बा रास्ता है सामने । फिर कोई मासूम सी चाहत जगी । फिर भरम का सिलसिला है
ऐसा तो कुछ नहीं कि मर ही जाएं ख़ुशी से । औ ग़म भी गुज़रते नहीं हैं अपनी गली से । उस चाँद सी हँसी