हम मजदूर हैं साहब
हम मजदूर हैं साहब श्रम से न कभी घबराते है । खून पसीना दोनो मिल जाते, तब अपने घर चल पाते है ।। सर्दी, गर्मी
हम मजदूर हैं साहब श्रम से न कभी घबराते है । खून पसीना दोनो मिल जाते, तब अपने घर चल पाते है ।। सर्दी, गर्मी
शत्रु को मार के सीमा पर,खुद के भी होश खोया होगा । वतन की मिट्टी चूम के सैनिक,मृत्यु की गोद में सोया होगा ।। मां
नमन करते मेवाड़ भूमि को, जिसने न शीश झुकाया था । जिनकी तलवारों के शोर से, ये धरती_अम्बर थर्राया था ।। वो धरती पुत्र महाराणा
मां की गोद है सबसे प्यारी, इसकी तो है बात निराली । इसका अंचल कवज के जैसे, दुआ से मिटती विपदा सारी ।। माता यशोदा
खून के बदले आजादी की, कीमत सबने चुकाई थी । हंसते हुए सूली पे चढ़े, सीने पर गोली खाई थी ।। जलियांवाले बाग में, रक्त
हम से बयां हो न सकी,ये मासूम सी मुहब्बत, तुम अगर समझ लेते, तो यार बहुत अच्छा था । अभिनय में ही निकल गई,अब यार
चिराग आंधियों में अब जलाएगा कौन?, गिरते हुए लोगों को अब उठाएगा कौन?, सब लोग अपनी अपनी राह चल दिए, भटके हुए लोगों को राह
कैकई तुम उदास मत होना, तुमने अपना कर्तव्य निभाया था । विधि ने लिखा वनवास राम का, तुमने अपयश कहां कमाया था ।। राम यदि
रघुनंदन के साथ साथ में,सीता वन को जाती है, क्या वन में जाकर नाथ,कुछ याद न मेरी आती है । तुमको तुम्हारी उर्मिला,हर पल हर
अमृत की है सबको लालसा, विष को भला पिएगा कौन ? प्रकाश की है सबको जरूरत, दिनकर सा मगर तपेगा कौन ।। अंधकार ने मारी