मैं चाहूं बस इतना
नहीं चाह मुझे तुम प्रेम की मिसाल बन जाओ न मर्यादा हो ऐसी कि सिया के राम बन जाओ न समझाने को प्रेम राधा के
नहीं चाह मुझे तुम प्रेम की मिसाल बन जाओ न मर्यादा हो ऐसी कि सिया के राम बन जाओ न समझाने को प्रेम राधा के
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:। नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता:प्रणता:स्म ताम् ॥” हे माँ! तुम्हारे दर पे आए ज्ञान का वरदान दो।। कर दो सारे
पट खोले हैं माता मैं तेरे द्वार आई हूँ धन धान्य के नहीं मैं शब्द हार लाई हूँ अज्ञानी हूँ विमूढ़ हूँ माँ ज्ञान से