अभी तो उसके इतराने के दिन हैं
अभी तो उसके इतराने के दिन हैं। किसी के ख़्वाब में आने के दिन हैं। मुहब्बत की कसौटी से हमारे, गुज़र कर बस ख़रे आने
अभी तो उसके इतराने के दिन हैं। किसी के ख़्वाब में आने के दिन हैं। मुहब्बत की कसौटी से हमारे, गुज़र कर बस ख़रे आने
मुझे इश्क़ में और क्या चाहिए था। फकत रहनुमा, आप सा चाहिए था। इशारों इशारों में मुझको बुलाकर, उसे हाले दिल, पूछना चाहिए था। हुई
वो इशारा कर रहा था और कुछ। अंत में निकला तमाशा और कुछ। देखिए हमको यहांँ पर क्या मिला, चाहते थे हम भी पाना और
झूठ बताया जा सकता है। शहर जलाया जा सकता है। पल दो पल का साथ हमारा, ज़श्न मनाया जा सकता है। अपनों पर बन आई
देखकर आज काग़ज़ी चेहरे। याद आए थे शबनमी चेहरे। अब कहांँ दिखती हैं हंँसी सूरत, भूल बैठे हैं सादगी चेहरे। अपनों को भूलते सभी जा