एक होली ऐसी भी (कथालेख)
मां मैं बाजार रंग लेने जा रही हूं अरे परी मत जा देख ना कितना हुडदंग हो रहा है होली का इस समय अकेले जाना
मां मैं बाजार रंग लेने जा रही हूं अरे परी मत जा देख ना कितना हुडदंग हो रहा है होली का इस समय अकेले जाना
और अंगुलिमाल उनके पैरों में गिर पड़ा कहानी सुनते सुनते बस यही शब्द मन में गूंजते रहे ऐसा कैसा ब्यक्तित्व रहा होगा उस योगी का
मैं हूं ना वाक्य नहीं जादू की छड़ी है जो पल भर में बुझे हुये मन जो अवसाद की घोर अंधेरी गली से निकालकर आशा
आज तो होली खेले बगैर जाने नहीं देंगे इतना कह कर करीब करीब 15 लड़कों का झुंड उन 5 लड़कियों के ग्रुप को घेर कर
भोले भंडारी शिव सत्य सन्यासी, सदा रहे ध्यान मगन शम्भू अविनाशी, भूत-प्रेत गण शिव संग चलत हैं, दीन हीन पद स्वारथ कर बनाते विश्वासी,
एक दिन गणतंत्र दिवस की चढ़ी खुमारी है, छुट्टी का दिन है बस यही बात इसकी प्यारी है, कितनों के दिल में धड़कता है देश
मां शारदे हे मां शारदे ! तनिक सा तो तार दे, अज्ञानता से भरी है दुनिया तनिक सा संवार दे..!! सब समझते ज्ञानी स्वयं को