रामेश्वर प्रसाद चौधरी
रामेश्वर प्रसाद चौधरी

रामेश्वर प्रसाद चौधरी

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अब तो यह याद भी नहीं आता

समाज अब समाज नहीं रह गया है यह तो सजावट का एक बाजार बन गया है चारों ओर चकाचौंध का हथियार बन गया है रंगबिरंगे

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क्षमाप्रार्थी हूँ मां !

मां ! अर्पित है चरणों में, सादर नमन, वंदन !! मां तो सिर्फ मां होती है। उसकी बराबरी दुनिया की कोई चीज नहीं कर सकती

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