बुरा ना मानव होली हय(अवधी कविता)
होली हय भाई होली हय बुरा ना मानव होली हय।फागुन महिनम उड़त हय धुरी मिठ सब कय बोली हय।।गोंहू अउर महुवा पाक चुनर सब कय
होली हय भाई होली हय बुरा ना मानव होली हय।फागुन महिनम उड़त हय धुरी मिठ सब कय बोली हय।।गोंहू अउर महुवा पाक चुनर सब कय
पैसा सोना चांदी टीवी फ्रिज ना हमका कार चाही।मिलय मेहरूवा सीधी साधी सुन्दर व्यवहार चाही।।मानय हमका लरिका जस अस हमका ससुरार चाही।सालिक मानी बहीनी जस
मुरझान डेरान मुंह बनाए एक दिन फुल कहय माली से।का बिगारेंन तुम्हार हम जवानिम तुरत हमका डाली से।।काटत छाटत सबसे बचाए खाद अउर डारत पानी।बिरवस
अन्न ज़िंदगी मनाई सब कय अन्न कय सम्मान करव ।अन्न कईहां सुरक्षित राखव अन्न कय ना अपमान करव ।।मेहनत औ पसीना बहाई कय अन्न उब्जावत
समाज कहय जिनका दलित उनके जाति कुम्हार।माटी तोड़ी मरोड़ी कय बनावत जग कय पालनहार।।लरिके बिटिए अउर मेहरूवा पालत घर परिवार।वाह जमाना भगवान का आज सब
राजा गए प्रजा जब आए भवा देश कय बंटाधार। बढ़ी गरीबी हल्ला बोल चारिव लंग बस भ्रष्टचार।। लोकतन्त्र मा लुटेक पाईन नेतक खुलीगा देखो पोल।
प्रकृति से जीवन हय हम सबके प्रकृति से पियार करव। प्रकृति कईहां नकसान ना पहुँचाव उके कहर से डरव ।। प्रकृति भगवान कय रुप प्रकृति
जागय से सोवय तक लईके खान पान पर धई लेव ध्यान।रोग बिमारी नियरे ना आई होई जाई सगरिव कल्यान।।दस तक खटियप सोव रात मा उठय
तुम सब जने अछूत कहत, हम हन दलित नारी।गरीबी विभेद अन्याय, भूंख प्यास से हम मारी।।तुमरे घर कोई जानवर मरे तो दलित मर्द उठाईस हय
गुजर बसर से उप्पर उठी कय चलो कोई सिखा जाय।हाथेस अपने चलो आज अपन मुकद्दर लिखा जाय।।बुद्धि संघेंन विवेक मिला उप्पर से स्वस्थ्य देंही दिहीन