शिवानंद सरस्वती: एक महान योगी

शिवानंद सरस्वती: एक महान योगी

स्वामी शिवानन्द सरस्वती का जन्म दक्षिण भारत मे ताम्रपर्णी नदी के पास पट्टामड़ाई नाम के गांव में 1887 को हुआ था. इनके बचपन का नाम कुप्पु स्वामी था. कुप्पु स्वामी के पिता का नाम श्री पी.एस. गहवर था जोकि एक तहसीलदार थे. माता का नाम पार्वती अम्मा था. माता-पिता दोनों ही धार्मिक प्रवृति के थे और ईश्वर के प्रति श्रद्धा रखते थे. इसका प्रभाव शिवानन्द स्वामी पर भी पड़ा. बचपन से ही उन्होंने वेदांत का अध्ययन और अभ्यास किया और बाद में चिकित्साविज्ञान का अध्ययन भी किया. इसके बाद वे 1913 में मलाया में डाक्टर के रूप में लोगों की सेवा करने लगे.

एक किताब पढ़ने के बाद शिवानन्द स्वामी बन गए संन्यासी

कहा जाता है कि, शिवानन्द सरस्वती को एक साधु ने एक आध्यात्मिक पुस्तक दी. उन्होंने इस पुस्तक को पूरा पढ़ा और इसका असर यह हुआ कि उनके मन में वैराग्य का भाव उदय हुआ. हालांकि इससे पहले वे श्री शंकराचार्य, स्वामी रामतीर्थ और स्वामी विवेकानंद के साहित्य भी पढ़ा करते थे और नियमित पूजा-पाठ भी करते थे. लेकिन इस किताब को पढ़ने के बाद अचानक इनके मन में साधना का भाव उदय हो गया और वे 1922 में अपनी नौकरी छोड़कर मलाया से भारत वापस आ गए. घर पर अपना सामान रखा और घर के भीतर प्रवेश किए बिना ही तीर्थ स्थानों के भ्रमण पर निकल पड़े.

कुप्पु स्वामी से कैसे बनें स्वामी शिवानन्द सरस्वती

तीर्थ भ्रमण करते हुए स्वामी शिवानन्द ऋषिकेश पहुंचे. यहां वे कैलाशाश्रम के महंत स्वामी विश्वानन्द सरस्वती से मिले और इनके शिष्य बन गए. स्वामी विश्वानन्द ने इन्हें सन्यास की दीक्षा दी और इस तरह कुप्पु स्वामी का नाम बदलकर स्वामी शिवानन्द सरस्वती रखा.

ऋषिकेश में स्वामी शिवानन्द ने कठिन आध्यात्मिक साधना की. वर्षा और धूप में बैठना, मौन धारण करना, व्रत करना और तपस्या जैसे कई साधना करने लगे. सन् 1932 में उन्होने शिवानन्दाश्रम और 1936 में दिव्य जीवन संघ (Divine Life Society) संस्था की स्थापना की. आध्यात्म, दर्शन और योग पर उन्होने लगभग 300 पुस्तकों की रचना की. 14 जुलाई 1963 को स्वामी शिवानन्द सरस्वती ने महासमाधि ले ली.

स्वामी शिवानन्द सरस्वती के अनमोल सुविचार

  • यदि मन को नियंत्रित किया जाता है, तो यह चमत्कार कर सकता है. यदि इसे वश में नहीं किया जाता है, तो यह अंतहीन दर्द और पीड़ा पैदा करता है.
  • छोटे-छोटे कामों में भी दिल, दिमाग और आत्मा सब कुछ लगा दो. यही सफलता का राज है.
  • आज आप जो कुछ भी हैं वह सब आपकी सोचका परिणाम है. आप आपके विचारों से बने है.
  • अपनी पिछली गलतियों और असफलताओं पर बिलकुल भी न उलझे क्योंकि यह केवल आपके मन को दुःख, खेद और अवसाद से भर देगी. बस भविष्य में उन्हें दोहराएं नहीं.
  • यह संसार तुम्हारा शरीर है. यह संसार एक महान विद्यालय है, यह संसार आपका मूक शिक्षक है.
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रचनाकार

Author

  • Dr. Rishika Verma

    Dr. Rishika Verma is working as Assistant Professor, Department of Philosophy, School of Humanities and Social Sciences in Hemavati Nandan Bahuguna Garhwal University, Srinagar (Garhwal) Uttarakhand, A Central University. She Completed her higher education, B.A., M.A., Ph.D. and Post-Doctoral Fellowship from Banaras Hindu University, Varanasi. Her 30 Research papers are published in National and international, UGC CARE and UGC listed journals. She presented 34 papers in national and international seminars and conferences. She has wirtten 3 books till now. she got many Awards and Samman like International Educationist Award, Best Young Woman Faculty Award, National YogaRatna Award, Sahitya Gaurav Samman, Hindi Utkrisht Sahitya Seva Samman, Woman Icone Award.

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