जैसा कि हम सब जानते हैं कि एक नारी कई रिश्तों का निर्वाह करती है। पारिवारिक रिश्तों को छोड़कर यदि हम सामाजिक रिश्तों की बात करे, तो नारी का एक रूप आज घर घर में कामवाली सहायिका के रूप में उल्लेखनीय है। कुछ पैसों को जोड़ सके ,इसलिए ये सारे दिन कमर तोड़ परिश्रम करती हैं। इसके साथ ही अपने घर की जिम्मेदारी तो है ही। ऐसी ही एक सहायिका कुछ समय के लिए हमारे घर आई थी, जिसका नाम टुकटुकी था। पैसे लेकर काम करने वाली टुकटुकी मेरे प्रति अत्यंत सहृदय थी। कुछ भी काम बताने पर वो सहज भाव से कहती, हम सब कर देंगे भाभी ।हालाकि थोड़े भी बर्तन ज्यादा होने पर ,इतना ढेर बर्तन कीजिएगा न, तो छोड़ देंगे काम वो अपना रोब दिखाने में भी पीछे न रहती। फिर तुरंत ही मुस्कुरा कर कहती कि भाभी काम छोड़ देंगे तो ,ई दूध वाला चाय हमको कही मिलेगा । आपलोग जैसन चाय हमको कहियो ने मिलता है। ऐसे ही दिन कट रहे थे कि एक रात टुकटुकी ने फोन पर अपने पति की मृत्यु की सूचना दी। उस बेसहारा का इस दुनिया में एक बच्ची के अलावा कोई न था। उसके ससुराल पक्ष के लोग उसे प्रताड़ित करने लगे थे।थोड़े ही दिन बीते थे कि कुछ परिचित लोगों ने उसका पुनर्विवाह करवा दिया। वह उस नए संसार में स्वयं को ढालने का प्रयास करने लगी।टुकटुकी अब भी मुझे फोन करती है ,हमारे लिए कुशलता की कामना करती है। मैं भी टुकटुकी और उसके नए परिवार के लिए ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूं कि वो जहां भी रहे खुश रहे।