रज-रज में बसे चरण तुम्हारे ब्रज में,
भूल जाऊं खुद को मैं लोट जाऊं रज में,
स्वर्ग से सुंदर हर वन-उपवन ब्रज का है,
जब से पड़े हैं चरण तुम्हारे इस ब्रज में,
खुद को भुलाकर सब खुशियां मानते हैं,
होकर बेसुध सब तुमको ही देखते हैं,
देखते ही तुमको सब नर-नारी भूल जाते हैं,
प्रेम में खोकर सब तेरे गाल लाल कर जाते हैं,
ब्रज रज में ही उपजे हैं बीज कई प्रेम के,
यमुना के बूँद-बूँद में प्रीत घोल दिए प्रेम के,
पशु-पक्षी भी सीख गए भाषा प्रेम की तुम्हारे,
कलयुगी इंसान हरदम विष घोलता है प्रेम में,
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