कीमती अश्क कभी आंख से जो छलकेगा
डूब कर भाव में दिल से सदा नहा लूंगा
बिखेर करके खुशबू रात सजा शबनम की
जला के दीप प्रेम दिल उजाला कर लूंगा
हार जाएगी हवा जल रहे चिरागों से
गमों में रहकर भी मुस्कान दिल में भर लूंगा
भले ही लहर भंवर या की तूफान आए
मान करके चुनौती नाव पार कर लूंगा
दिल से बिखरेगा ना विश्वास का परिंदा कभी
हौसलों से ही अपनी मैं उड़ान भर लूंगा
चाद उतरेगा कभी तो झील के पानी में
खिला के दिल का कमल रंग उसमें भर दूंगा
सदा ही हार जाएगी खिजा बहारों से
बदल के रुख को नया रंग मै खिला दूंगा
कभी जो देगा दस्तक उम्र का दरवाजा मुझे
कर्म की धार देकर के उसे सजा दूंगा
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