जब से बूंदे पड़ी आंखों की हैं
तबसे दिल में नमी ही नमी है
मिल गया जब से मुझको ये सावन
तब से मन में खुशी ही खुशी है
ये धड़कता है दिल मेरा क्यों अब
पास में मेरे जब तू ही तू है
जितना होता हूं मैं पास तेरे
लगता फिर भी अभी कुछ कमी है
है समंदर से ज्यादा ही गहरा
बूंद आंखों में जो ये भरी है
आग तब तब लगाता है सावन
चाह मिलने की जब-जब जगी है
मैं तड़पता था पाने को खुशियां
जब तलक तू तो मेरी नहीं थी
मैं सवरता रहा अब तो हरदम
जब से तू मेरी अपनी बनी है
जब से मैंने तुझे चुन लिया है
अब कली कोई चुननी नहीं है
तुम निभाना मेरा साथ हर दम
यही इच्छा दिलो में जगी है
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