कविता संग्रह -‘रात की धूप में’
कवि – पीयूष सिंह
प्रकाशक – हिन्द युग्म
पीयूष सिंह , दिल से कवि किन्तु पेशे से इंजिनियर इस युवा ने अपने पहले ही कविता संग्रह में इतनी गंभीर सोच का परिचय दिया है जो जिंदगी के प्रति उनके नजरिये और उनके तजुर्बे को बखूबी दर्शाता है . सामान्य तौर पर देखा गया है की कवि की सबसे पसंदीदा कविता का नाम ही पुस्तक का शीर्षक होता है किन्तु यह पुस्तक उसका अपवाद है . संग्रह की पहली कविता में ही कवि ने ज़िंदगी के प्रति अपने नज़रिये को स्पष्ट कर दिया है . बात कविताओं के भाव की करें तो अधिकाँश कविताओं में केंद्र में ज़िन्दगी ही है ज़िंदगी का फलसफा भी अजीब है , इस से कोई खुश नही , जिसे जो मिला वो उस से भी खुश नहीं , उसे जो नही मिला उस को पाने की चाह है । सारी उम्र इसी खोने पाने के बीच फ़ना हो रही है , ऐसी ही रोज़मर्रा की आम आदमी के मन की बातों को सरल शब्दों में कविता का नाम दिया है ।संग्रह के प्रारंभ की कुछ कवितायें है जिन्हें मन के क्षणिक भावों को शब्दों में गूंथा है, मध्यम वाक्यांशों में शब्दो को संजो कर निर्मित कृति को कविता से अधिक उनके अंतर्मन की बातों का लिपिबद्ध होना ही समझता हूँ ,बेशक इसे उन्होंने कवित्त का रूप दिया है वाक्य सरल गंभीर एवं अपने आप में गहराई समेटे हुए है , जबकि दूसरे भाग की कवितायेँ थोड़ा विस्तार लिए हुए है .पूर्ण एकाग्रता एवं दिल से पढने वाली कविताये है और हम कही न कही खुद को इनमें या इन से जुड़ा हुआ पाते है . बाते दिल से निकली है सो कड़वी सच्चाई निहित है उनमें ,साथ ही कुछ खोने का दर्द , कही रिश्तों के बिखरने की कसक भी दिखती है ,नकारात्मकता में सकारत्मकता ढूंढने की तलाश है ,अंधेरे में उजाला ढूंढना बहुत आसान है लेकिन कवि ने इसके विपरीत सोच दी है की संभव है उजाले में भी कुछ तो अंधेरे होंगे उन्हें भी ढूंढा जाए । कवितायेँ मानो निजि अनुभवों की कड़ी है, हर बार गिरने और संभलने के बीच आप कुछ टूटते है कहीं थोड़ा सा बिखरते है वह सिर्फ दर्द नही होता । ये बहुत कुछ उसी टूटने और बिखरने के किस्से है .
अक्सर हम सभी सपनों में जीते है और उनमें से कुछ को पूरा करने का प्रयास भी करते हैं और शायद किसी किसी के कुछ सपने पूरे भी हो जाते हैं किन्तु यथार्थ इस से परे है . जहाँ सपने हैं वहां बिखराव तो होगा ही . सपने और सच के बीच की जंग को दर्शाते हुए कवि कहते हैं कि “काश ये सब सपना होता कम से कम ये अपना होता “ . कठिन और कटु सत्य किन्तु बहुत ही आसान से शब्दों में . “ पीयूष और कविता “ की पंक्ति “कविता रिक्तता की पूर्ति हेतु एक जीवित तलाश है” कवि हृदय के दर्द को बयां करती है . एक अन्य कविता में जीवन की तमाम कठिनाइयों के बीच आगे बढ़ते जाने के ज़ज्बे को बहुत ही खूबसूरती से साधारण जीवन की भाषा शैली में ही भाव को शब्दों की माला में पिरोया है संग्रह की एक अन्य कविता जहाँ उम्मीदों के ज़रिये जीवन में आगे बढ़ने की सकारात्मक सोच देती है वही कवि ने एक अन्य कविता में दोस्ती के रिश्ते को अनमोल एवं सुदृढ़ बताया है . कवि की विशेषता है की बिना बहुत अधिक कठिन मन लुभावन शब्दों ,विशेषणों , अलंकारों के प्रयोग के एक आम आदमी के दिल की बात को कागज़ पर उतार दिया है . कवि से कविताओं के नाम और आकर्षक तरीके से प्रस्तुत करने की अपेक्षा अवश्य करी जाती है .
हर इन्सान के जीवन में कभी न कभी ऐसा समय आता है जब वह चहुँ-दिश सिर्फ अन्धकार , बिखराव , ठोकर और टूटन ही पाता है ,निराशा के उस दौर को गहराई से समझते हुए मन के भाव दर्शाती रचना “हम भी इन्सान” है , टूटे दिल के हाल को बयां करती किन्तु सकारात्मक सन्देश देती छोटी सी कविता है “काँटों को फूल बनाओ”. वहीँ शायद स्वयं के अंतर्मन के भावों की अभिव्यक्ति है या इन्सान को संदेश देती हुयी कविता “प्रायश्चित” , गहरे दर्द और मजबूरी को बयां करती कहानी है बापू मुझे… जीवन में कभी नितांत एकांत क्षणों में हम किसी का साथ चाहते है उस अकेलेपन के दौर में दिल एक आसरा चाहता है .चाहत होती है कि काश कोई हमारा हाथ थाम ले और जब ऐसा सहारा मिल जाये तो सब आसां हो जाता है . कविताओं में दर्द है , गहरी सोच है .दोस्ती पर फख्र और दोस्तों का एहसान है , , सफलता और असफलता के बीच की दूरी का सुन्दर वर्णन किया है जुगनू और सितारों को लेकर क्यूंकि शिखर पर कायम रहना और सफलता सदैव किसी की होकर नहीं रहती . सन्देश साफ़ है की गुरूर से बचें वहीँ “मेरी कविता” का भाव अच्छा है ,कविता तो कवि की आत्मा है उसका प्यार है जीवन है कुछ ऐसे ही विचार इस कविता के माध्यम से व्यक्त किये गए हैं. इसी प्रकार “ये इंसान मर चुका” में आज की काठ हो चुकी मानवता पर तीखा किन्तु शालीन व्यंग्य किया है. अनेक कविताओं के माध्यम से कवि के मन का अंतर्द्वंद , अपने अन्दर का छोभ ,कुछ न कर पाने का पछतावा या फिर मन की अशांति स्पष्ट उभर कर सामने आती है . जीवन के ऊपर सामान्य से अलग एक और सोच देखने को मिलती है कविता “ज़ख़्मी जीवन” में जहाँ जीवन में दुनिया के सितम सहते सहते एक आदत सी हो जाती है. कहीं विरह की पीढ़ा है तो कहि आजकल बढ़ती आपस की द्दूरियों की चिंता झलकती है . जीवन के लगभग हर पहलू पर कवि की नज़र है गरीबी , मजदूरी , मां ,बचपन वृद्धावस्था मित्र या वात्सल्य .यूं तो हर कवि से यह उम्मीद निरर्थक ही है की वह सभी विषयों पर कविता कहे किन्तु जब लेखक सभी विषयों पर लिखे किसी एक को छोड़ दे तो कहना लाज़मी हो जाता है इस संग्रह में भी प्रेम पर कविताओं का न होना थोडा सा अचंभित करता है. जीवन के यथार्थ से जुड़कर रोज़मर्रा के जीवन के सच को बहुत नज़दीक से देखा समझा और फिर शब्दों में गूंथ कर प्रस्तुत किया है. वर्तमान के बिगड़ते हालात के बीच इंसानियत का गिरता स्तर कवि की चिंता का सबब भी है और पाठक के लिए विचारण का भी .
कविताओं को जैसा मैंने समझा प्रस्तुत है समीक्षा के रूप में.
शेष आप पर छोड़ता हूँ . पढ़ें और निर्णय लें किन्तु पढ़ें ज़रूर
सादर,
अतुल्य
14.02.2023