ये जीत का जश्न जलता रहे
भले हमारी हार हो
सिर्फ हमीं से प्यार हो।।
जल रहे हैं लोग यहाँ, देख तेरी स्वच्छंदता को
रोक नहीं सकता कोई, उनकी मांसिक मंदता को।
फैली जगत में भ्रांतियां, रोकूं कैसे फैले अंधता को
द्वेष में सब मर रहे हैं, देखकर तेरी आनन्दता को।।
स्वछंद हो जीवन सदा
हर बात का ऐतबार हो
सिर्फ हमीं से प्यार हो ।।
नारी के पग-पग पे यहाँ, दिल्लगी पे भी लगाम है
पैदा हुए हो उसी तन से, बदनामी करना तो आम है।
पर्दे में पैर पकड़ गिड़गिड़ाते, बाहर नर तेरा नाम है
एक झलक पाने की ललक, दिल में सुबहे – शाम है।।
नारियों के प्रति दिलो में
उफनता आभार हो
सिर्फ हमी से प्यार हो।।
पूजनीय नारी सदा से, जगत जननी जानकी
जल उठी वह पद्मिनी भी, रक्षा की तेरे मान की।
मृदु बात पे तेरे पुरुष वह, बाजी लगाती प्रान की
तेरे लिए ही वो मर मिटी, लाज रक्खीअभिमान की।।
वह जिता अपराजिता
सुलक्षणों की आगार हो
सिर्फ हमीं से प्यार हो ।।