ऐषणाओं के सघन घन और जीवन।
आनुषांगिक भी न हो पाया अकिंचन और जीवन।
शांत पानी इतने कंकड़। अंधड़ों की पकड़ में जड़,
आत्मा ह्रासित हुयी बस रह गया तन और जीवन।। ऐषणाओं..
कहते हैं सबकुछ यहां है,
यहां है तो फिर कहां है
इतनी हरियाली में बसते इतने निर्जन और जीवन।। ऐषणाओं…
सूर्य संग तमाश्रित दीप,
मोती बिन ये कैसी सीप
मैं हूं या मटमैला दरपन और जीवन। ऐषणाओं…
प्रलय सृजन का चक्र है यह,
सरल सी पर वक्र है यह,
तप्त मरुभूमि सा भासित है यह सावन और जीवन।।
एषणाओं ….
लख चौरासी करुण क्रंदन।
टूटा न माया का बंधन।
मैं अकेला शेष तृष्णा का ये कानन और जीवन।।
ऐषणाओं…
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