यादों के आईनों में रह जाते हैं ।
जाने वाले आंखों में रह जाते हैं ।
ख़ुशबू बन कर उड़ते हैं फिर बाग़ों में ।
तितली के पर फूलों में रह जाते हैं ।
बादल आंखों को छलका कर चल देते ।
नन्हे मोती झीलों में रह जाते हैं ।
झूठी बातें सारी बाहर आ जातीं ।
सच्चे किस्से महलों में रह जाते हैं ।
शायर मर कर भी जीते हैं दुनिया में ।
उनके चेहरे ग़ज़लों में रह जाते हैं ।
कितनी बूंदें सागर बन जाया करतीं ।
कितने सागर बूंदों में रह जाते हैं ।
बच्चे चल देते मुस्तक़बिल की जानिब ।
बचपन उनके गलियों में रह जाते हैं ।
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