नज़ारा और कोई किस तरह दिखाए नज़र,
तेरे सिवा कोई मौजूद हो तो आए नज़र।
वो जिसको देख के अल्लाह याद आता हो,
उस एक चेहरे से कैसे कोई हटाए नज़र।
हो ऐसी आँख कोई जिस में तेरा जल्वा हो,
हो ऐसा चेहरा कि जिस में तू मुझको आए नज़र।
इस एहतियात से मैं उसकी सिम्त देखता हूँ,
मेरी नज़र पे कहीं उसकी पड़ न जाए नज़र।
यही है अस्ल में मे’राज तेरे बंदे की,
हर एक जल्वे में बस तेरा जल्वा आए नज़र।
बहुत से देखने वाले हैं तेरे ख़ालिस को,
मगर कहाँ से तेरे जैसी कोई लाए नज़र।
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