जो मेरे सामने आओ तो दिल की बात हो तुमसे
भरा जो प्यार है दिल मे कभी इजहार हो तुमसे
अकेलेपन का जीवन भी कोई जीवन नहीं होता
इसे तुम ध्यान में रखकर के दे दो साथ अब मुझको
सदा गर तुम छिपाओगे जो अपने प्यार को मुझसे
सहोगे दूरियां दिल की रहोगे दूर जब मुझसे
हुई थी जब निगाहें चार तेरी और मेरी जो
तू बोली थी मिलाकर दिल रखूंगी साथ में तुझसे
निगाहें तुम मिलाकरके मुझे तडपाया है कितना
तुम्हारे गम मे डूबा हू ये चाहे पूछ लो खुद से
जो झटका था कभी जुल्फों को अपने मद मे खो करके
देख तेरा अदाएं दिल मेरा घायल हुआ तब से
कभी देखा था जब तूने मुझे कातिल निगाहो से
तभी से उलझा हूं अब तक तेरे आंखो के जादू मे
सदा होती है बातें दो यहां इंकार करने की
नहीं है प्यार मुझसे या की तू दुनिया से डरती है
ये दुनिया जो भी कहती हो उसे तुम आज कहने दो
बुरा साबित जो करती हो उसे तुम आज करने दो
भरोसा खुद पे ही रखो कभी ना गैर पर करना
कहे जो जितना कहना हो खुशी के साथ तुम रहना
रचनाकार
Author
गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |