कट कर शीश गिरे धरा पर,
लेकिन रूंड करै तलवार ।
मृत्यु से भी जो लड़ बैठे,
ऐसा दिवला का राजकुमार ।।
गूंजे ऊदल की ललकार ।
जिधर भी मुड़ जाता था बेंदुल,
शत्रु में मचती चीख पुकार ।।
शत्रु तो उसने लाखों बनाए,
मित्र एक लाखन सरदार ।
कर से कभी कृपाण न छूटे,
चले गजेंद्र पे होकर सवार ।।
धन्य धन्य है रक्त राजपूताना,
जिसने कभी न मानी हार ।
धन्य धन्य बुंदेल खंड है,
जिसमे उपजे है वीर अपार ।।
वीर मल्हारे का अश्व रण में,
जिस तरफ भी मुड़ जाता था ।
वो विजय प्राप्त करके ही,
फिर रण से वापस आता था ।।
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