हे अभावों से जन्मी चपल बालिके
अब मेरे घर ना आना तू फिर से कभी
मेरे जीवन में खुशियां ही छाई रहे
ना शिकन मेरे मस्तक पे लाना कभी
सुख की निद्रा में ही मुझको सोने दे अब
देके ठोकर ना फिर से जगाना कभी
मैं गमों में ना हरदम यहां पर रहू
आके इतना न मुझको सताना कभी
मैं तेरी मान लूं तू मेरी मान ले
मेल इतना तो मुझसे बिठाना कभी
हो सके मेरे जीवन में दुख ना कभी
ऐसा रिश्ता तू मुझसे निभाना कभी
कैसे सीखूं तेरे बीच रहना यहा
आ के फिर से तू मुझको बता ना कभी
सबके जीवन में एक बार आती है तू
झुर्रियां माथ सबके दिखाती है तू
कौन अपना यहां और पराया है कौन
ज्ञान दोनों का आकर कराना कभी
कैसे चिन्ता मे रहकरके जीते हैं सब
हाल सब का मुझे भी बताना कभी
जो अभावो में डूबी ना हो चांदनी
सबके जीवन के घर में बिछाना कभी
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