एक ग़ज़ल मेरे ताज़ा संग्रह ” क्या मुश्किल है ” से …..

सामने बैठी रहो तुम इक ग़ज़ल हो जाएगी ।
ज़िन्दगी मेरी यक़ीनन अब सफल हो जाएगी ।

रेशमी अरमान सारे सौंप कर देखो मुझे ।
याद की सूनी हवेली फिर महल हो जाएगी ।

तुम कभी ना चाहना मुझको तुम्हे मेरी कसम ।
वरन मेरी ज़िंदगी कितनी सरल हो जाएगी ।

रंग मैं अपना भरूंगा, रूप तुम देना उसे ।
कल हमारी कल्पना बिल्कुल नवल हो जाएगी ।

छाँह दे दो गेसुओं की तुम मेरे एहसास को ।
ज़िन्दगी भर की पहेली आज हल हो जाएगी ।

बीज मैंने बो दिए हैं सींच देना तुम उन्हें ।
प्यार की थोड़े दिनों में ही फ़सल हो जाएगी ।

आंसुओं की झील से रिश्ते बना लोगे अगर ।
आपकी मुस्कान भी खिलता कँवल हो जाएगी ।

………………

ग़ज़ल-संग्रह- ” क्या मुश्किल है ” से …..

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रचनाकार

Author

  • कमलेश श्रीवास्तव

    कमलेश श्रीवास्तव पिता-श्री शिवचरण श्रीवास्तव माता-श्रीमती गीता देवी श्रीवास्तव जन्म तिथि- 14 अगस्त 1960,श्री कृष्ण जन्माष्टमी जन्म स्थान- सिरोज, जिला विदिशा, म.प्र. शिक्षा-एम.एससी.(रसायन शास्त्र) साहित्यिक गतिविधियाँ- आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से रचनाओं का प्रसारण विभिन्न पत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हिन्दी उर्दू काव्य मंचों पर काव्य-पाठ| कृतियाँ/प्रकाशन- नवगीत संग्रह समांतर-3, गज़ल संग्रह "वक्त के सैलाब में" एवं गज़ल संग्रह "क्या मुश्किल है" का प्रकाशन सम्प्रति- शाखा प्रबंधक एम.पी. वेअर हाऊसिंग एण्ड लॉजिस्टिक्स कार्पोरेशन शाखा पचौरी, जिला-रायगढ़ में शाखा प्रबंधक के रूप में पदस्थापित| संपर्क सूत्र- 269"धवल निधि" बालाजी नगर,पचौर, जिला- रायगढ़, म. प्र.,पचौर 465683 मो-09425084542 email-kamlesh14860@gmail.comCopyright@कमलेश श्रीवास्तव / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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