एक ग़ज़ल मेरे ताज़ा संग्रह ” क्या मुश्किल है ” से …..
सामने बैठी रहो तुम इक ग़ज़ल हो जाएगी ।
ज़िन्दगी मेरी यक़ीनन अब सफल हो जाएगी ।
रेशमी अरमान सारे सौंप कर देखो मुझे ।
याद की सूनी हवेली फिर महल हो जाएगी ।
तुम कभी ना चाहना मुझको तुम्हे मेरी कसम ।
वरन मेरी ज़िंदगी कितनी सरल हो जाएगी ।
रंग मैं अपना भरूंगा, रूप तुम देना उसे ।
कल हमारी कल्पना बिल्कुल नवल हो जाएगी ।
छाँह दे दो गेसुओं की तुम मेरे एहसास को ।
ज़िन्दगी भर की पहेली आज हल हो जाएगी ।
बीज मैंने बो दिए हैं सींच देना तुम उन्हें ।
प्यार की थोड़े दिनों में ही फ़सल हो जाएगी ।
आंसुओं की झील से रिश्ते बना लोगे अगर ।
आपकी मुस्कान भी खिलता कँवल हो जाएगी ।
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ग़ज़ल-संग्रह- ” क्या मुश्किल है ” से …..
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