प्रतिबिंब पर मत टिकें
बिंब कुछ तो और है
मनुज जग का सिरमौर है।।
सिंधु के उद्दाम लहरों को, नाप डाला है मनुज
हवाओं पे सवार होके, नभ को फार डाला है मनुज।
चाँद सूरज के परिधि का, अनुपात निकाला है मनुज
एवरेस्ट के मस्तक पे चढ़के, पदचाप डाला है मनुज।।
पर नियति के आगे झुका
नहीं ठिकाना – ठौर है
मनुज जग का सिरमौर है।।
विज्ञान का वरदान लेकर, आगे बढ़ रहा है मनुज
धरा की तो बात छोड़ो, चाँद पे चढ़ रहा है मनुज।
परमाणु के खंड – खंड को, आज पढ़ रहा है मनुज
कल्पनाओं में डूबा हुआ, नव स्वप्न गढ़ रहा है मनुज।।
भूल इतना भारी पड़ा
तूं काल मुख का कौर है
मनुज जग का सिरमौर है।।
सत्ता पे आसीन होके, ये सार ना समझा मनुज
देखता है जग में केवल, उसपार ना समझा मनुज।
भूला प्रभु को मूढ़ मना, आभार ना समझा मनुज
आया कहाँ से सोंचा भी, आधार ना समझा मनुज।।
लाशों से नदियाँ पट गयीं
ऐसा कोरोना का दौर है
मनुज जग का सिरमौर है।।