।। पानी – पानी।।

चहुंओर दिख रहा पानी – पानी

कीचड़ से गीली चूनर धानी।

बच्चे कागज की नौका दौड़ाये

हाल नदी की वही पुरानी।।

खतरों से वह खेल रही है

लहरों को भी झेल रही है।

बाँध हो गये जीर्ण – शीर्ण

मुहकमा सरकारी फेल रही है।।

आज चू रहे हैं छप्पर – छानी

कच्चे-पक्के की यही कहानी।

सारे बच्चों के स्कूल बन्द हैं

बढ़ी हुई गुरुओं की परेशानी।।

छिपा लिया सूरज मुख को

तरस रहे जन-जन सुख को।

मेघ बरसते गरज-गरज के

कहूं कहाँ तक पशुओं के दुख को।।

फाट गया है उर किसान का

जल समाधि हो गया धान का।

उधर जलाकर इधर गलाकर

भविष्य में संकट है पिसान का।।

गीत न गाती चिड़िया रानी

हालत सबकी हुई विलानी।

करते क्रीड़ा जल में बच्चे

अल्हड़ों ने भी चादर तानी।।

बालकों की बढ़ी हुई शैतानी

गलियों-गलियों से बहता पानी।

मच्छरों के भी दंश बढ़ गये

जान बचाती मच्छरदानी।।

चूहे खेत से घर में घुस आये

इधर-उधर वे छिद्र बनाये।

सब्जी बोरा बर्तन काटें

जब भी उनको भूख सताये।।

धान – पिसान की मारा-मारी

खूब हो गयी महँगी तरकारी।

कल कारखाने बंद हो गये

आयी मानो दुख की बारी।।

मजदूर भी मुख को लटकाये

बोलो बच्चों को काव खिलाये।

मजदूरी भी ना मिलने वाली

घरवाली को कैसे समझायें।।

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • विनोद कुमार 'कवि रंग'

    नाम - विनोद कुमार उपनाम - कविरंग पिता - श्री वशिष्ठ माता - श्रीमती सावित्री जन्म तिथि - 15 /03 /1973 ग्राम - पर्रोई पो0-पेड़ारी बुजुर्ग जनपद - सिद्धार्थनगर (उ0 प्र0) लेखन - कविता, निबंध, कहानी प्रकाशित - समाचार पत्रों मे (यू0 एस0 ए0के हम हिंदुस्तानी, विजय दर्पण टाइम्स मेरठ, घूँघट की बगावत, गोरखपुर, हरियाणा टाइम्स हरियाणा तमाम पेपरों मे) Copyright@विनोद कुमार 'कवि रंग' / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

Total View
error: Content is protected !!