।। अभिनय।।

पात्रता तो मुझमें कहाँ है

फिर भी अभिनय कर रहें हैं

सोंच में तेरे मर रहे हैं।।

देखने को उर में मेरे, उठ रही अभिलाष है

जानता हूं हो परायी, पर हृदय की आस है।

तट कहाँ मिलते नदी के, नर नियति का दास है

चाहतों का उठता जनाज़ा, कंठ आयी श्वास है।।

मूर्छना ज्योंही गयी

भव में हम तो तर रहें हैं

सोंच में तेरे मर रहे हैं।।

गंध तन का मन है बहंका, पग भी डमाडोल है

सौगंध खाके वो न आयी, वाणी का कैसा मोल है।

झंझावात बदली आज छायी, जग का यही भूगोल है

प्रेम नहीं नाटक किया, ना ही उसके वचन का तोल है।।

पाथेय बिन पथ विकट

देख संकट डर रहें हैं

सोंच में तेरे मर रहे हैं।।

उसके निकट आये बिना ही, दूर कैसे हो गये

संग उसके देखा न कोई, मशहूर कैसे हो गये।

ख्वाब में भी ना दिखी वो, मजबूर कैसे हो गये

अन्जान में यारों सुनों, हम दस्तूर कैसे हो गये।।

पीड़ा बड़ी पग-पग खड़ी

उसके तपन में जर रहे हैं

सोंच में तेरे मर रहे हैं।।

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रचनाकार

Author

  • विनोद कुमार 'कवि रंग'

    नाम - विनोद कुमार उपनाम - कविरंग पिता - श्री वशिष्ठ माता - श्रीमती सावित्री जन्म तिथि - 15 /03 /1973 ग्राम - पर्रोई पो0-पेड़ारी बुजुर्ग जनपद - सिद्धार्थनगर (उ0 प्र0) लेखन - कविता, निबंध, कहानी प्रकाशित - समाचार पत्रों मे (यू0 एस0 ए0के हम हिंदुस्तानी, विजय दर्पण टाइम्स मेरठ, घूँघट की बगावत, गोरखपुर, हरियाणा टाइम्स हरियाणा तमाम पेपरों मे) Copyright@विनोद कुमार 'कवि रंग' / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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