हम हन दलित नारी

तुम सब जने अछूत कहत, हम हन दलित नारी।
गरीबी विभेद अन्याय, भूंख प्यास से हम मारी।।
तुमरे घर कोई जानवर मरे तो दलित मर्द उठाईस हय ।
जाऊंने घर मा तुम मौज करत हो दलित बनाइस हय।।
जाऊंन मंदिर हमार मर्द बनाईस उमा जायक नाई अधिकार हय।
भगवान तुम ई ना समझेव की हमका नाई तुमसे पियार हय।।
मन मंदिर मा बसे हो तुम तबहुं माटिक मंदिर मा आई हन।।
पिरेम समर्पित अच्छत अउर फुल तुमरे खातिर लाई हन ।।
कपड़ा मा दर्जी चाही धोवेक धोबी जुता सियत अछूत हय ?
हंसिया अउर सिलौटा बनावे तुमरे नजर मा अछूत हय।।
गोंहू अड़हरी बोईन काटीन उहय खायक तुम जवान भयो।
दलित हाथ से दुहा दुध पि तुम अतना बलवान भयो।।
हमहुंक उई अधिकार चाही जो सबका अधिकार मिला हय।
खुशी आत्मसंतुष्टि हंसी भी चाही जैसे दोसरेक पियार मिला हय।।
जाऊंन तलवम कुकुर पानी पिन वही पानी सींच तरकारी उबजाए हन।
जन्मेव जब तुम मु मा अंगुरी डारी गंदगी निकारी तुमका बचाए हन।।
जन्मेव जब तुम महतारी हमरे हप्तन तेल लगाईन रहय।
बाप रहे जब तुमरे बीमार खून दईके हमरे बाप बचाईन रहय।।
अपनेक ऊंच दोसरेक नीच कही हमका दलित नाम दिहेव।
गरीबी पिछड़ापन कय मजाक उड़ायो अछूत कही बदनाम कीहेव।।
दुई आंखी दुई हाथ पाऊं तुम सब जस हमहुं तो इन्सान हन।
फरक नाई हय तुमसे कुछ हमरेम तुम जस हमहुं समान हन।।
गरीबी भुखमरी अउर दुःख से हम होई गिन गोरी से कारी।
स्वाभिमान हय हमका हम पर हम हन दलित नारी।।

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रचनाकार

Author

  • आनन्द गिरि मायालु

    (कवि, लेखक, पत्रकार, समाजसेवी एवं रेडियो उद्घोषक) शिक्षा : स्नातक पेशा : नौकरी रुचि : लेखन, पत्रकारिता तथा समाजसेवा देश विदेश की दर्जनों पत्र पत्रिका में कविता, लेख तथा कहानी प्रकाशित। आकाशवाणी लखनऊ, नेपाल टेलीविजन तथा विभिन्न एफएम चैनल से अंतर्वाता तथा कविताए प्रसारित। भारत तथा नेपाल की तमाम साहित्यिक संस्थाओं से सम्मान तथा पुरुस्कार प्राप्त। पता : करमोहना, वार्ड नंबर 3, जानकी गांवपालिका, बांके (लुम्बिनी प्रदेश) नेपाल।Copyright@आनन्द गिरि मायालु/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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