स्वप्न या हकीकत

कल सुबह जल्दी उठने के चक्कर में मैं आज रात सो नहीं पा रहा था | जितना जल्दी सोने का प्रयास करता आंखों से नींद इतनी दूर चली जाती थी| मैंने सोने का सारा इंतजाम बहुत ही व्यवस्थित ढंग से किया था फिर भी नींद ही नहीं आ रही थी |
पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी न मिलने के कारण मुझे काम के सिलसिले में दिल्ली आ जाना पड़ा यहां मेरे कुछ दोस्त रहते थे जिनसे मैंने नौकरी के विषय में बात की थी आश्वासन मिला था कि तुम दिल्ली आ जाओ कहीं ना कहीं नौकरी दिलवा दूंगा | घर से प्रसन्नता बस नौकरी के विषय में नाना प्रकार के सपने मन में पालते हुए दिल्ली पहुंच गया काफी तलाशने के बाद आज मुझे यह नौकरी मिली थी | एक तरफ नौकरी मिलने की खुशी और दूसरी तरफ अपने को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शित करने की इच्छा जिससे कि मैं मालिक की निगाह में विश्वसनीय बन सकूं|
मुझे मदर डेयरी पर नौकरी मिली थी जिसमे सुबह 4:00 बजे से दोपहर तक दूध बेचना पड़ता था दूध की गाड़ी सुबह ही आ जाती थी | दूध को पूर्ण व्यवस्थित करना एवं सभी ग्राहकों को दूध देना हमारी जिम्मेदारी थी |
हमारे मित्र का घर डेरी से बहुत दूर था जहां से इतनी सुबह मैं ड्यूटी नहीं कर सकता था अत: मुझे कमरे की चिंता सताने लगी आसपास जो कमरे में मिल रहे थे उसका किराया मेरी पहुंच से दूर था | मेरे पास पैसा भी कम था जो था भी वह खर्च होता चला जा रहा था |काफी अनुनय विनय एवं समस्या बताने पर मालिक ने मुझे डेरी के उस छोटे से कमरे में रहने की इजाजत दे दी |
मैंने जल्दी से सारा सामान जो कुछ भी उस समय मेरे पास था कमरे मैं रखा और निश्चिंत भाव से सोचने लगा कि अब मुझे किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं
मेरा पहला दिन होने और अपने स्वभाव के कारण भी मैं आसपास के वातावरण की जानकारी लेने में जुट गया, यहां पर सब अपरिचित तो थे ही किंतु कहीं भी दो चार आदमी एक साथ बैठे रहते तो मैं भी उनकी बीच में बैठकर उनकी बातें सुना करता जिससे मेरा मनोरंजन भी हो जाता और कुछ क्षेत्र की जानकारी भी मिल जाती |
वहां पर कुछ लोग डेरी के पीछे भूत प्रेत होने की चर्चा करते हुए कह रहे थे कि, यहां पर एक चुड़ैल रहती है जिसको पकड़ लेती है कभी छोड़ती नहीं, इन सब बातों को सुनने के बाद मुझे डर लगने लगा कि इस कमरे में मैं अकेले रहूंगा, यदि रात में आ गई तो मैं क्या करूंगा|
मुझे नींद कब आ गई पता ही नहीं चला, रात के लगभग 2:00बजे रहे होगे ,मुझे प्राकृतिक पीड़ा की अनुभूति हुई, मैंने उठकर दरवाजा खोला तभी प्रेत वाली बात याद आ गई, बाहर घना अंधेरा था मुझे बहुत डर लगने लगा | प्राकृतिक पीड़ा और डर दोनों अपने पूरे शबाब पर थे, मैंने अपनी आंखें नीचे करके किसी तरह प्रसाधन गृह तक पहुंचा, प्राकृतिक पीड़ा समाप्त होने के बाद ही मेरा मन शांत एवं स्थिर हो सका किंतु, अब मैं पुन: कमरे तक कैसे पहुंचू सोचकर लंबे लंबे डग मारने वाला ही था कि किसी ने मुझे पीछे की तरफ खींचा | मैंने देखा काली छाया के रूप में एक लड़की जैसी जो अंधेरे के कारण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं पड़ रही उसे देखकर तो मेरे रोम रोम खड़े हो गए, पूरा शरीर कांपने लगा , मैं जल्दी से बिना कुछ समझे कमरे में कब पहुंचा मुझे भी पता नहीं चला|
दरवाजे को बंद करने के बाद भी मैं काफी देर तक अपने दोनों हाथों से दरवाजे को दबाए रखा कि कहीं कुंडी ना खुल जाए |
कुछ देर रुकने के बाद मैंने अपने आप को पूरी तरह से बिस्तर में ढक लिया फिर भी ऐसा लग रहा था जैसे वह दरवाजा खटखटा रही हो, मैं डर के कारण बिस्तर में और अधिक छुपा जा रहा था किंतु दरवाजे की खटाहट बंद ही नहीं हो रही थी ,लोग दरवाजा खोलो खोलो चिल्ला रहे थे ,मैं उठा और जब दरवाजा खोला तो देखा दूध की गाड़ी आ गई थी वही लोग दरवाजा खुलवा रहे थे, डांटते हुए कहने लगे कितनी गहरी नींद सोते हो, कब से हम दरवाजा खटखटा रहे हैं , आधे घंटे हो गए ,आज आप के कारण हमें बहुत देर हो गई, अभी मुझे कई जगह दूध देने जाना है, मैं उन लोगों से अपनी परिस्थिति न बताकर गलती मानना ही उचित समझा और क्षमा मांगी ,वे लोग भविष्य में ऐसी गलती न दोहराने की नसीहत दे कर चले गये |
बाहर देखा तो धूप निकल आई थी ,सभी लोग अपने अपने कामों में व्यस्त थे, दूध लेने वाले लाइन में खड़े होकर खिड़की खुलने का इंतजार कर रहे थे, बहुत देर हो चुकी थी मैं अपने किये पर पछता भी रहा था और आगे वाला काम जल्दी पूरा हो इसके लिए पूरे मन से जुटा भी था |
आज मेरी नौकरी का पहला दिन डाट एव पश्चाताप मे बीता| जब सभी लोगों को दूध मिल गया, तब जाकर मैं अपने आप को संतुलित कर पाया ,लेकिन मुझे यही बात समझ में नहीं आ रही थी कि मैंने सपना देखा था या हकीकत में ऐसा हुआ|
मैंने पुरखो की बातों को ध्यान में रखकर, कि कुछ स्थान गड़बड़ होते हैं जहां सपना अधिक मिलते हैं ,अतः मैंने सबसे पहले अपने बिस्तर को उठाकर कमरे के दूसरे कोने पर बिछाया, तो देखा कि मेरा बिस्तर गीला हो चुका था |

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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