विष को भला पिएगा कौन ?
प्रकाश की है सबको जरूरत,
दिनकर सा मगर तपेगा कौन ।।
अंधकार ने मारी है कुंडली,
निशा ने उत्पात मचाया है ।
मानवता सहमी सहमी सी,
छल ने भी प्रपंच रचाया है ।।
दीपक बन कर के सबके,
तम को भला हरेगा कौन ।।
अमृत की है सबको लालसा,
विष को भला पिएगा कौन ?
द्रोपदी सभा में खड़ी पुकारे,
पांच पति है महाबली हमारे ।
खिच रहा सभा में चीर हमारा,
अब मेरी रक्षा करेगा कौन
उठी प्रबल प्रतिकार की ज्वाला,
अब इससे भला बचेगा कौन ।।
अमृत की है सबको लालसा,
विष को भला पिएगा कौन ?
भीष्म मौन है,द्रोण मौन है,
ध्रतराष्ट देख नही पाते है ।
इसी मौन के कारण ही,
सौ कौरव मारे जाते है ।
इतिहास के पन्ने हमको,
बस ये ही ज्ञात करते है ।
ध्रतराष्ट जैसे पुत्र प्रेम में,
खुद का शत्रु बनेगा कौन ।।
अमृत की है सबको लालसा
विष को भला पिएगा कौन।।
वो वैसे ही फल पाते है,
जो जैसे वृक्ष लगाते है ।
बबूल लगाने वाले आखिर,
काटों से कहां बच पाते है,
जो अन्याय के साथ खड़े,
वो बेमौत ही मारे जाते है,
देखना है इस महासमर में,
जीवित भला बचेगा कौन ।।
अमृत की है सबको लालसा,
विष को भला पिएगा कौन ।।