*राम कथा में वैश्विक जीवन मूल्य*

ऐसा कहा जाता है राम से बड़ा है *राम का नाम* और सच भी है स्कन्दपुराण में शंकर जी पार्वती जी से कहते हैं कि ‘राम’ यह दो अक्षरों का मंत्र जपने पर समस्त पापों को नाश करता है- ‘राम’ यह दो अक्षरों

का मंत्र शतकोटी मंत्रों से भी अधिक महत्वशाली है।

पद्मपुराण में राम का अर्थ होता है

रमते योगितो यास्मिन स रामः

अर्थात्- योगीजन जिसमें रमण करते हैं वही राम हैं।

राम नाम सिर्फ दो वर्णों का मेल नहीं वरण सनातन धर्म में एकता और अखण्डता का प्रतीक है। राम नाम हिन्दू संस्कृति की विरासत है। प्रभु श्री राम जी विष्णु जी के अवतार हैं। 

राम मार्यादा पुरुषोत्तम हैं। पुरुषों में महान और

मर्यादा में रहकर सभी कार्य को पूर्ण करने वाले सभी का मान रखने वाले सबसे सर्वोत्तम पुरूष राम को कहा जाता है। वे एक आदर्श पुत्र, एक चरित्र्यवान पति, एक अतुलनीय भ्रातः, एक कुशल नेतृत्व की क्षमता रखने वाले राजा, अटूट दोस्ती निभाने वाले , सभी के साथ सखा भाव रखने वाले और सच्चा मार्गदर्शक की भूमिका का निर्वहन किए। जिसमे एक सेवक की भांति हनुमान जी उनका साथ दिए। और लक्ष्मण भी उनके साथ-साथ १४ वर्ष तक उनकी सेवा में तत्पर रहें।

राम ने पारलौकिक जीवन से लौकिक जीवन में आकर एक आम नागरिक के तरह जीवन बिताया। लौकिक जीवन से पारलौकिक जीवन में कैसे जाया जाए यह सिर्फ राम के जीवन चरित्र से ही सीखा जा सकता है। 

राम के जैसा सिर्फ राम ही हो सकते हैं, दूसरा कोई नहीं। 

उन्होंने एक कुशल नेतृत्व क्षमता के साथ -साथ अभाव में भी सुखद जीवन जीने की प्रेरणा दिए। अपने सुंदर से मुख पर मुस्कान सजाये जैसे सभी के दुखो को निवारण करने के लिए ही उन्हें यह मुस्कान प्राप्त हुई हो। उनमें अपार साहस थी अपने से बड़ों का आदर के साथ-साथ सभी के बातों को सहर्ष स्वीकार करने की अपार क्षमता थी तभी आज भारत ही नहीं पूरे विश्व में राम जी की कथा होती है । और विभिन्न भाषाओं में रामायण लिखा गया है तथा प्रति वर्ष राम को मानने वाले सभी देशों में राम लीला का नाटक मंचन किया जाता है। यह नाटक और कथा वाचन इसलिए भी जरूरी हो जाती है ताकि हम अपने जीवन को सद्मार्ग पर ले जा सकें। अथार्त हम राम तो कभी भी नहीं बन सकते उन जैसा अपार साहस और अदम्य जरूर प्राप्त कर सकते हैं । 

प्रभु श्री राम चाहते तो अयोध्या के राजा बन सकते थे परंतु उन्होंने जीवन को कष्टकर स्थिति में १४ वर्ष 

वनवास को काटा क्योंकि उनके पिताश्री राजा दशरथजी ने अपनी पत्नी को वचन दे दिया था भरत को राजा बनाने की । इसलिए उन्होंने अपने पिताजी के दिए हुए वचन को टूटने नहीं दिया। इसलिए कहा भी गया है कि “प्राण जाए पर वचन न जाए” और अपने मार्ग में आने वाले हर बाधा को बड़े ही रोचक ढंग से सुलझाया। यहां एक और बात दृष्टव्य है कि राम का अवतार रावण का वध करने के लिए हुआ था और अगर प्रभु श्री राम को राज सिंहासन प्राप्त हो जाती तो रावण का वध कैसे होता?

भले ही उस समय भरत को राजा बनाया गया परंतु प्रभु श्री राम तो सबके हृदय के राजा है। उसे कोई कैसे मिटा सकता है?

प्रभु श्री राम का अवतार तो सिर्फ इसलिए हुआ कि हम सभी उनके दिखाए मार्ग पर चल सके। 

प्रभु श्री राम की गाथा हम इसलिए भी गातें हैं कि उन्होंने अपनी बाधा की स्थिती में ऐसे -ऐसे साथी चुने जो आम जीवन जीते हैं उन्होंने सबरी के जूठे बेर खाकर प्रेम की पराकाष्ठा को उदघाटित किया। उन्होंने वानर सेना को अपनी जीत का मार्ग बनाया। वे जिस रास्ते से गए उन रास्तों में रहने वाले लोगों का जीवन तार दिया। उन्होंने अहिल्या, केवट का उद्धार किया।

राम हमारे जीवन का आधार है, राम मर्यादा पुरुषोत्तम राम है, अथार्त राम वह है जो जीवन में आकर जीवन निर्वाह कर हमें जिने की राह दिखाते हैं । 

राम का जीवन हमें मानवता का पाठ पढ़ाती है जो अस्त्र -शस्त्र के साथ-साथ हर विद्या में माहिर होने का गुण सिखाती है पर सभी को उचित समय पर प्रयोग करने के गुण का भी समावेश है । 

सत्य का असत्य पर, पुण्य का पाप पर, अच्छाई का बुराई पर, प्रेम का घृणा पर सदा ही जय होती है और यही कारण है कि रावण के अहंकार को नष्ट करने के लिए प्रभु श्री राम का अवतार हुआ था ।

प्रभु श्री राम की कथा आज के युग में हम सभी को जरूर पढ़नी चाहिए जिससे हम सभी अपने जीवन से खुद को मुखर कर सकें।

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रचनाकार

Author

  • संतोष कुमार वर्मा "कविराज"

    काँकिनाड़ा, कोलकाता, पश्चिम बंगाल. Copyright@संतोष कुमार वर्मा "कविराज"/इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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