मैं हूं ना वाक्य नहीं जादू की छड़ी है जो पल भर में बुझे हुये मन जो अवसाद की घोर अंधेरी गली से निकालकर आशा के हिंडोले पर बैठा देती है
किसी स्त्री के लिये ये वाक्य कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देता है जिम्मेदार्यों को निभाते निभाते इच्छाओं के तहखाने में एक ढ़िबरी सी चमकती है जब कान में कोई धीरे से बोल जाता है …उड़ो स्वयं को पहचानो बड़े आकाश में छलांग लगा कर पकड़ लो सूर्य को मुट्ठी में और बना लो अपने सर का ताज क्योंकि
मैं हूं ना जो तुम्हें गिरने नहीं देगा !
गिरने से मत डरो उठो फिर से कोशिश करो ब्यवधान को झटक कर सरिता की भांति कल कल बहो सुगम पथ निर्धारित करो निरंतर बहने रहने से मजबूत से मजबूत शिलाखण्ड भी टुकड़े होने पर मजबूर हो जायेगा बस रूको नहीं बहते रहो स्वच्छ सजग निर्मल बन बस बहो रूको नहीं
और एक जादू की छड़ी हौसला बढ़ाती है
मैं हूं ना
अपनत्व से भरा हौले हौले पंखों सा सहलाता आत्मविश्वास की लौ सरीका भीतर भरता तेज जब आंधी बनकर भीतर से उमड़ता है तब तैयार होती है ज्वार भाटा की परिपाटी जो समूची दुनिया को अपनी लौ से प्रकाशित करने का तेज रखता है
और उस तेज को जो ईंधन प्रज्जवलित करता है वे है एक जादू का वाक्य मैं हूं ना !