गिराने वालों ने कब तरस खाया,
ये मेरा हौसला था,सम्हालता रहा ।।
हर कदम पर बाधाएं मिली मुझको,
फिर मंजिल की तरफ बढ़ता रहा ।।
लोग उठाते रहे मेरे किरदार पे उंगलियां
मैं फिर भी न रुका, सदा लिखता रहा ।।
वक्त का हर फैसला,मंजूर है मुझको,
वक्त से साथ साथ मैं,सदा चलता रहा।।
देखने वालों को तो,बस आग नजर आई,
प्रेम का दीपक था,जो प्रकाश करता रहा ।।
ये गीत,गजल,और शायरी, कविता,
अक्सर उसे सोच कर,मैं करता रहा ।।
वो लिखे हर शब्द से पन्ने भी पावन हो गए,
तेरा जिक्र जिस डायरी में,मैं करता रहा ।।
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