फिर मुद्दतें गुज़र गईं ख़ुद से मिले हुए,
मैं ख़ुद में खो गया था तुझे सोचते हुए।
और आप हैं कि हाथ लगाने पे आ गये,
दो दिन नहीं हुए हैं अभी दिल लगे हुए।
तेरे बग़ैर ही मेरी रातें गुज़रनी थीं,
मेरे नसीब में यही दिन थे लिखे हुए।
काँधे हसीन मिलते हैं रोने के वास्ते,
काम आ रहे हैं दर्द तुम्हारे दिये हुए।
अपने यक़ीं का उसको दिलाया यक़ीन यूँ,
मैं बेवक़ूफ़ बन गया सब जानते हुए।
औरों से हम ज़ियादा इबादत-गुज़ार थे
और फिर गुनह भी हमसे बड़े से बड़े हुए।
जो कहता था कि सब्र का फल मीठा होता है,
उसको दिये गए हैं सभी फल सड़े हुए।
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