मीठे पानी से
भरी हुई यह धरती
फागुन की धूप में
तपने लगी
वसंत की हवा
जंगलों में दौड़ती
नदी के किनारे
आयी
यहां बाग बगीचों में
पेड़ों से पीले पत्ते
झड़ने लगे
डालियों पर
नये पत्ते उग रहे
रात के
पहले पहर में
सारे प्राणी
सुख शांति की
नींद में सोये
सुबह खेतों से
महकती हवा
आंगन में आएगी
कोयल खिड़की के
पास
झुकी टहनी पर बैठी
कोई भूला बिसरा
गीत सुनाएगी
पानी का घड़ा
गर्मी के मौसम में
वक्त – बेवक्त
सबको पास बुलाएगा
तब बादल फिर
आकाश में आएगा
यह जंगल
भरा हो जाएगा
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