पुस्तक :सवा छः प्रेम
लेखक :अंकित मिश्रा
प्रकाशक : REDGRAB
शीर्षक :-
किसी भी पुस्तक को पढ़ने हेतु उसका शीर्षक प्रथम एवं प्रमुख आकर्षण होता है युवा कलमकार अंकित मिश्रा की इस प्रथम पुस्तक का शीर्षक आपको , अपने आकर्षण एवं रोमांच की बाँहों में समेटे उस जगह ले जाता है जहाँ पात्र के संग एक मासूम प्यार में डूबे हुए आप भी “सवा छः प्रेम” की ख़ूबसूरती , तार्किकता एवं मासूमियत से परिचित हो जाते हैं।
इस बिंदु पर वह कारण सामने रखना पाठक गण के रोमांच को बरक़रार रखने की दृष्टि से उचित नहीं होगा हाँ यह ज़रूर कहूँगा की शीर्षक अपनी सार्थकता बखूबी सिद्ध करता है।
रचनाकार:-
युवा कलमकार अंकित मिश्रा जी की यह प्रथम कृति है जिसके द्वारा उन्होंने साहित्य जगत के द्वार पर सशक्त दस्तक देते हुए अपनी आमद दर्ज करा दी है। यूं तो वे आजीविका हेतु बैंकिंग जैसे नीरस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं किन्तु प्यार पर केन्द्रित यह रचना कलमकार की परिपक्वता का सुंदर परिचय देती है।
भाषा शैली:-
उनकी लेखन शैली से एक बेहद सधे एवं मंझे हुए लेखक की कृति होने के संकेत मिलते हैं। उनकी कथानाक की स्पष्टता शैली से प्रकट होती है जहाँ विचारों का मुक्त प्रवाह है उसमें स्पष्टता है कहीं विचारों का विषयवस्तु से भटकाव होने का आभास नहीं होता। समृद्ध शब्दकोष उनकी भाषा एवं वाक्यांशों को सुन्दर एवं प्रभावी बनाने में अत्यधिक सक्षम है। दृष्योचित एवं पात्रानुरूप भाषा एवं लहज़े का खूबसूरत इस्तेमाल किया है।
सधी हुयी संतुलित भाषा, विषय पर उनका सम्पूर्ण नियंत्रण, विषयवस्तु की नवीनता एवं रुचिकर संवाद इस बात का रंच मात्र भी आभास नहीं होने देते की यह उनकी प्रथम कृति है । भावों को प्रगट करने का सधा हुआ लहजा एवं विचारों का अपनी सम्पूर्णता में प्रगटीकरण उनकी शैली को विशिष्ठ बनता है। वाक्य विन्यास सुन्दर शब्द चयन के पश्चात प्रस्तुतीकरण को और भी आकर्षक बना देते हैं। व्याकरण शुद्ध है एवं भाव अभिव्यक्ति सुंदर है फलतः वर्तनी शुद्ध है। वाक्य लघु एवं मध्यम हैं जहाँ साधारण बोल-चाल की भाषा है अतः सहज ही ग्राह्य है एवं बगैर किसी विशेष प्रयास के भी पाठक सहज ही स्वयं को पात्र में ढूँढ लेता है।
वक्यांशों की सुन्दरता उनकी सरलता में है अतः कहीं भी क्लिष्ट भाषा का प्रयोग नज़र नहीं आता। उनके पास घुमड़ते हुए विचारों को अभिव्यक्त करने हेतु सुन्दर समानार्थी वाक्यों का विशाल संग्रह मौजूद है वे अपने हर भाव को, प्रत्येक कल्पना को बहुत ही सौम्य किन्तु प्रभावी एवं शांत लहजे में सम्पूर्ण विस्तार से रखते हैं। कहीं भी संवाद अथवा दृश्य को समाप्त करने का उतावलापन लक्षित नहीं होता। आवश्यकतानुसार क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग किया गया है जो पाठक को कथानक से जोड़े रखता है। विचार सरल एवं सुलझे हुए है एवं वही लेखन में भी स्पष्टतः प्रतिविम्बित होते हैं।
कथानक :-
सम्पूर्ण उपन्यास में किसी भी स्थान पर कथानक पर उनका नियंत्रण कम होता नज़र नहीं आता। भावनाओं को प्रगट करने हेतु लेखक द्वारा कुछ सुंदर वाक्यांश भी बीच में पिरो दिए हैं जो प्रस्तुति को विशिष्टता एवं सुन्दरता प्रदान करते हैं। जैसे कि ;
“जब सपने गहरे हों तो उनसे खुद ही निकलना पड़ता है। या तो सपना पूरा करके हम बाहर आते हैं या फिर कुछ ऐसा हो जो उन्हें झकझोर कर बाहर निकाल दे।“
या फिर
“अर्जुन अक्षर नहीं प्रेम लिख रहा था”।
प्रेम को ऐसे भी दर्शाया जा सकता है , एक यह रूप भी देखें:
“प्रेम तब और लाल हो जाता है जब उसे जाहिर किया जाता है। शब्दों से, इशारों से, बहानों से या फिर कुछ ऐसा जिसे बस वे दोनों समझ सकें। वैसे प्रेम खुद को बयां करने के लिए कभी भी शब्दों का मोहताज़ नहीं रहा पर शब्द उसको और आसान कर देते हैं। ये एक ऐसा प्रेम था जिसमें किसी के चेहरे से प्रेम नहीं हुआ है बल्कि किसी की सादगी, समर्पण, भावनाओं या फिर बातों से प्रेम हुआ है। किसी के चेहरे से प्रेम करना प्रेम को सिकोड़ देता है। जब किसी को देखा ही नहीं तो प्रेम अनंत है।“
कहानी यूं तो शुरू हुयी पहले पहले प्यार के नाज़ुक एहसासों के साथ पहली छुअन , पहली बात पहली मुलाकात किन्तु विशेता यह थी की यह सब आम प्रेम कहानी से विपरीत लड़के के साथ हो रहा था। या तो वह प्यार में सब कुछ कुर्बान कर देने वाली अवधारणा पर चल रहा था जहाँ उसका पवित्र प्रेम एवं समर्पण और ऐसे ही अन्य आदर्शों पर आधरित था जबकि प्रेयसी आज की, नए ज़माने की युवती थी जिस के आधुनिक ख्यालों के मुताबिक हर वस्तु का एक मूल्य होता है और उसके लिए प्रेम भी एक व्यापर ही था जहाँ प्रेमी उसकी मांगों की आपूर्ति करने वाला, अर्थात प्रेम का मूल्य है।
सो बात यूँ ही बनती गयी और कई दफ़ा बिगड़ी भी। प्रेयसी का प्यार उसकी भौतिक ज़रूरतों के समानुपाती चलता रहा। नायक बार बार झिड़का गया किन्तु दिल के हाथों मजबूर जब जब प्रेयसी की ज़रूरतें उस पर हावी हुयी वह नायक से प्यार करने लगी। नायक का ब्रेक अप का दर्द, बेबसी और असहाय होने जैसे हालात को बखूबी दर्शाया है। एक ओर ग्रामीण महिला का निश्छल प्रेम दर्शाया है तो वहीं दूसरी ओर शहरी गर्ल फ़्रेंड की महज़ स्वार्थ की यारी भी दिखलाई गयी है ।
कथानक कई छोटे छोटे किस्से साथ लेकर आगे बढ़ता जाता है, कभी बैंक की कार्य शैली समझते हुए कथा के नायक संग बैंक में होते हैं तो कभी शहर की गलियों में या फिर नदी किनारे, कहीं मित्रों का वार्तालाप है तो कहीं अकेलेपन में टूटे हुए व्यक्ति का दर्द और हाँ, माँ का प्यार भी,साथ ही दोस्त द्वारा दोस्ती निभाने की निःस्वार्थ एवं पवित्र मिसालभी दिखलाई गयी है।
किन्तु मुख्य विषय जिसके लिए अन्य सहायक किस्से गढ़े गए है वास्तव में अनोखा है। बेहद रोमांचक कथानक लेकर कहानी कही है, यह सोच ही रोमांचित करने हेतु पर्याप्त है की आप किसी ऐसे शख्स के साथ निरंतर पत्र व्यवहार में लिप्त हैं जिस से न कभी मिले न ही जानते हैं। और इस के चलते उस से प्रेम ही हो जाये। ख़तों बेताबी से इंतज़ार होने लगे। सही पते पर आया पत्र भी सही ही है बस जिसे मिला वह कोई और है , अर्थात उस से भिन्न है जिस के लिए वह पत्र है जो की उस पते पर नहीं रहता और जो उसका प्राप्तकर्ता है वह, वह नही है जिसके नाम पत्र है। अब ये वाला जो वह है अर्थात जो रह तो रहा है सही पते पर किन्तु पत्र उसके लिए नहीं है और यह उन पत्रों का जबाब वह बन के देने लगे जो कि वह नहीं है। इन्हीं सब यह वह के बीच , खतो-किताबत का यह सिलसिला ज़ारी रहता है।
ख़तों के ज़रिए ग्रामीण परिवेश एवं गाँव की रोजाना की ज़िंदगी, वहां का रहन सहन, खेत, जानवर, घर परिवार इत्यादि का विस्तृत परिचय पाठक को प्राप्त हो जाता है वहीं किसी अन्य के नाम से पत्र भेजते भेजते जहां एक ओर दूसरे पक्ष को मानसिक संतोष देने का खयाल नज़र आता है वहीं स्वयं के टूटे दिल को भी मरहम की तलाश है या शायद कहीं न कहीं ब्रेक अप हो जाने के बाद कुछ सहारा मानसिक रूप से मिल रहा है और उस अनदेखे शख्स के अनकहे प्यार में उतर ही चुके हैं संभवतः।
ग्राम्य जीवन का चित्रण हो या कार्यालयीन गतिविधियाँ या फिर डाक बाबु से चर्चा, हर बात बहुत ही विस्तार से कही गयी है किन्तु कहीं भी कथानक में भटकाव उत्त्पन्न नहीं करता।
बार बार कॉलेज की अपनी प्रेयसी को मौका देने के बावजूद उस पर हर बार सब जानते हुए भरोसा करना दिल से मजबूर आशिक़ की तस्वीर दिखलाती है वहीं ब्रेकअप के दौरान लड़की द्वारा दिखलाया गया व्यवहार बेहद गिरे स्तर का दर्शाया गया है। किसी अध्ययनरत युवती के मुंह से संभवतः शायद ही ऐसे शब्द निकलें। उसे तनिक सौम्य बनाया जा सकता था ब्रेकअप दिखलाने हेतु इस स्तर तक गाली गलौज या तिरस्कार आवश्यक है या नही विचारण योग्य है।
कथानक के माध्यम से परमार्थ की अच्छी मिसाल पेश की है। एक अंजान व्यक्ति के लिए अपना बहुत कुछ दांव पर लगा कर उसे ढूंढना, उसका इलाज करवाना, जो की वर्तमान समय में अपनों के लिए भी विरला ही दिखलाई पड़ता है, संभवतः आदर्श प्रेम की मिसाल प्रस्तुत करते हुए अपने एक पक्षीय प्रेम से वशीभूत, प्यार को उसका सर्वस्व दिलवाने का प्रयास है।
दुनिया नें अक्सर या बहुधा ऐसा नही होता कि आप अच्छे है तो सब अच्छे ही मिलें किन्तु प्रस्तुत कथानक में नायक को कॉलेज की प्रेयसी के आलावा सभी लोग बहुत यहाँ तक कि ट्रेन के सहयात्री या अस्पताल के लोग भी अच्छे एवं अत्यंत सहयोगी मिले।
आगे अपने अनदेखे प्यार से मुलाकात, कॉलेज की प्रेयसी से प्रेम कहाँ तक परवान चढ़ा, और और भी सारे सवालों का ज़बाब अंत तक मिल जाता है एवं इस पुस्तक के द्वारा जिस प्रतिभा का परिचय लेखक अंकित जी ने दिया है उसके कारण भविष्य में अंकित जी से और भी उत्तम साहित्य की अपेक्षाएं प्रबुद्ध पाठक वर्ग को रहेंगी।
समीक्षात्मक टिप्पणी
• एक सुन्दर, विचारित विषयवस्तु पर सुन्दर शैली में रचित कृति है।
• पुस्तक, प्यार, परिवेश प्रस्तुति, समर्पण, परमार्थ नि:श्छल प्रेम का अच्छा उदाहरण है।
• प्रतिभाशाली लेखक है एवं कथानक को रोचकता बनाये रखते हुए अपनी वांक्षित दिशा में मोड़ने में सफल हुए हैं।
• सम्पूर्ण उपन्यास में आद्योपांत रोमांच सामान्य तौर पर बना हुआ है। परोपकार एवं प्रेम की शानदार मिसाल पेश करता हुआ चरित्र गढ़ा है नायक का एवं अन्य पात्रों संग भी पूर्ण न्याय हुआ है।
• चंद विवरण एवं वृतांत अत्यधिक विस्तार लिए हुए हैं उन पर ध्यान अपेक्षित है ताकि अनावश्यक पाठन से बोझिलता न महसूस होने लगे।
सादर,
अतुल्य