पुस्तक-समीक्षा -‘दिसंबर संजोग’

लेखिका-आभा श्रीवास्तव

प्रकाशक- सन्मति पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स

कथा संग्रह की कहानियों को जैसा मैंने समझा समीक्षा रूप में प्रस्तुत है किन्तु यह कथा सार नहीं है .

दिसंबर संजोग की सुप्रसिद्ध लेखिका आभा श्रीवास्तव जी का “काली बकसिया” की अपार सफलता के बाद यह दूसरा कथा संग्रह है . काली बकसिया को पाठकों का बहुत प्यार मिला था एवं दिसम्बर संजोग भी पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय रहा जिसका मूल कारण शायद उनका आम जन की एवं आम जन से जुड़ी बातों को इतनी सहजता से अपने शब्दों में पिरो कर प्रस्तुत करना है की पाठक यह महसूस करता है मानो यह उसकी या उसके अपने ही घर की बातें हों एवं संभवतः उनकी लेखन कला की यही सरलता एवं सफलता है जिसके पीछे निश्चय ही उनका लेखन का दीर्घ अनुभव एवं वर्षों का सामाजिक परिवेश का सूक्ष्म अवलोकन एवं तजुर्बा है , कुछ स्थानों पर उनके पात्र परिवेश एवं स्थान के मुताबिक ही बोलचाल की भाषा प्रयोग करते हैं, जो उन्हें पाठक के और करीब लाती है . कुछ स्थानों पर स्थानीय बोली के संग यथोचित तार्किक व्यंग्य भी है जो वाक्यांशों को अति प्रभावी बनाने के साथ गंभीर कटाक्ष कर पात्र के मन के भाव चाहे वह क्रोध हो या व्यंग्य , झूठ हो या छल को और अधिक स्पष्टता से प्रस्तुत करने में सक्षम होते हैं । कहानियों की सरलता , सामान्य शब्दों का प्रयोग एवं सुलझे हुए वाक्यांश उन्हें अधिक रोचक बनाती है एवं पाठक को कथानक से जोड़ के रखती है। किसी भी कथानक में जब पात्र एवं पाठक एक हो जाये अर्थात पाठक पात्र में स्वयं को देखने लगे वही लेखन सफल हो जाता है.

इस कथा संग्रह में आभा जी की दस श्रेष्ट कहानियों का समावेश किया गया है जो मुख्यतः नारी प्रधान है . संग्रह की पहली कहानी “आखर ढाई” की नायिका उर्वशी रूपा आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी जीवन के हर पल को उन्मुक्तता से जीने के अरमानों में आकंठ डूबी हुयी मृगनयनी, प्रेमातुर, प्रिया अपने पहले दो विवाहों की शारीरिक एवं मानसिक , हर स्तर पर घोर असफलता के पश्चात अंततः जब अपने अरमानों को पूरा होते देख तीसरे प्यार को पाने आगे बढ़ती है तब उसके इस प्रेम प्रयास की क्या परिणीति होती है , क्या उसे उसके प्रेम के ढाई अक्षर मिले जिनके लिए वह हमेशा से आतुर रही . लेखिका ने समलैंगिकता जैसे अनछुए या कहें अछूत विषय को प्रमुखता से उठाकर अपनी सशक्त कलम का लोहा मनवा दिया है . रोचकता के संग संग रोमांच का भी बहुत पुख्ता पुट है जो कहानी का अंत जानने की सहज उत्सुकता को बरक़रार रखता है .

एक अन्य कहानी “निरुत्तर” नारी प्रधान होकर दहेज जैसी समस्या को सशक्तता से सामने रखती है जिसके चलते मध्यमवर्गीय परिवार की सुघड़ सुंदर नवयुवती रत्ना अपने सारे अरमानो का खून करते हुए उन्हें दहेज़ के आवरण से सजे विवाह के दानव को भेंट कर विदा लेती है . कहानी एक बेहद रोमांचक अंत के साथ साथ परिवार की घ्रणित सोच से भी परिचय करवाती है । नारी का जीवन क्या सिर्फ त्याग और बलिदान हेतु ही है या उसे भी अपना जीवन जीने का हक़ कभी मिलेगा, सोचना है पाठक को….

मेरी सबसे पसंदीदा कहानी की अगर बात करें तो वह है “.पंखुरी पंखुरी हरसिंगार” , इसमें जिक्र है एक ऐसी काबिल ,बेहतरीन सीरत और सूरत की मूर्ति,प्रतिभाशाली युवती का जो ज्ञान , प्रतिभा ,सौंदर्य होते हुए भी अपना घर बचाये रखने हेतु सारी कुर्बानियां देती है ,उसके जीवन की खुशहालियाँ आधुनिक समाज की उन्मुक्त तितलियों पर उसके ऐय्याश पति की आसक्ति की भेंट हो जाती है तब वह वापस अपने स्वावलंबन और आत्ममविश्वास के दम पर संघर्ष करते हुए अपने जीवन को पुनः खुशहाल बनाती है जैसे एक पंछी जिसका हौसला ऊंची उड़ान लेने का हो और सक्षम भी हो किन्तु यदि उसे सोने के पिजरे में कैद कर दिया जाए और उसके पर क़तर दिए जाएँ तो वह कब तक खुश रहे उस पर भी तब जब कि उसका दकियानूस सय्याद ही उस पर जुल्म करे । माँ का चरित्र चित्रण भी सुंदर है ।

“वे तीन” समाज मे जड़ जमाये बैठी ,बेटा होने की चाहत और दहेज प्रथा जैसी बुराइयों पर केन्द्रित है . बेटी जनते ही औरत औरत की दुश्मन हो जाती है , पुरुष प्रधान समाज में लड़की के जन्म को लेकर व्याप्त घटिया मानसिकता एवं कुन्द्ता पर गहरा आघात करती हुयी कहानी है . एक बेटी जहाँ व्याही जाये , उस घर का जब वारिस न दे सके भले ही जान भी दे दे तो भी ऐसे घर में दूसरी बेटी व्याहने को कैसे कोई इक्षुक हो सकता है और उन हालात में आत्मनिर्भर, स्वावलंबी बेटी का समाज ,परिवार के विरुद्ध लिया गया कदम काबिले तारीफ़ एवं सराहनीय है चाहे मसला व्याह हो या शिक्षा या संतान ।

अगली कहानी “ उस रात की बात “ एक सत्य घटना पर आधारित है . मृत आत्मा एवं सम्बंधित मान्यताओं का रोचक एवं रोमांचक विवरण है .

“अलविदा अम्मा” कहानी एक ऐसी युवती की है जिसे एक नही दो दो कारणों से सबकी प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा पहला तो जग जाहिर उसका लड़की होने का गुनाह और दूसरा भी ऐसा जिसके लिए वह कदापि ज़िम्मेवार न थी और वह था किसी दुर्घटना में उसका बच जाना पर उसके भाई की मृत्यु , जिसमें उसका दोष सिर्फ इतना था कि वह बच क्यों गयी. तानाशाही गुणों से भरपूर माँ , पति की अफसरशाही के नशे में चूर बड़ी बहन ,और इन सब के बीच मूक दर्शक रही शोभा अवसर प्राप्त होते ही परिवार के विरोध के बावजूद अपनी दुनिया अपने हाथों संवारने निकल पड़ती है ,आगे कहानी में कई उतार चढाव है , बेटियों के साथ दुर्व्यवहार , दुराभाव का सुंदर चित्रण है साथ ही बिभिन्न किरदारों का चित्रण समुचित है .पुरुष पात्रों की हैसियत कथा में एक कठपुतली से अधिक नही है. वहीँ एक अन्य कहानी “कहो कल्याणी” एक विधवा युवति के जीवन के उतार चढाव की कहानी है जिसमें विभिन्न प्रसंगों के मार्फत लेखिका ने पुनर्विवाह एवं विधवा विवाह का मुद्दा सशक्तता से उठाया है .कल्याणी का अमोल की और आकर्षण क्या परवान चढ़ेगा या वह एक मृग मरीचिका के पीछे जा रही है . नाटकीय घटनाक्रम के बीच रोचक एवं मन लुभावन वर्णन प्रस्तुत किया गया है. अमोल के ज़रिये एक विवेकशील समझदार युवा का चरित्र प्रस्तुत किया गया है .

वही कहानी “समय मौसम उम्र” एक सुदर्शन युवक की कथा है जो घटनाक्रम के चलते एक सुशील गुणी किन्तु कदाचित् कम सुन्दर लड़की से शादी करने हेतु बाध्य हो जाता है पर उसे कभी भी दिल से पत्नी नहीं स्वीकार कर पाता एवं वर्षों बाद भी अक्षत योवना उसकी पत्नी उषा स्वाभिमान पर चोट के कारन पितृ गृह वापस आ जाती है . युवक जो अब प्रौढ़ हो गया है क्या कदम उठता है जानना रोमांचक है .

संग्रह की अंतिम कहानी उसके हस्से का सुख भी मूलतः नारी केन्द्रित ही है सास के ज़ुल्म शोभना जो की कथा में बहू है के मुख से सुनने मिलते है. उन्हें अपने कर्मों पर पछतावा और गलतियों का का एहसास कबं और कैसे होता है कथानक में सामान्य रूप से बिना किसी लाग लपेट के दर्शाया गया है. अब अंत में बात पुस्तक की शीर्षक कथा “दिसंबर संजोग” की .यह एक ऐसी लड़की की कहानी है जिसका एक अदद सच्चा प्रेमी है और दोनों एक दूसरे को दिलोजान से चाहते है पर जब वह किसी आवारा शोहदे के ज़ुल्म का शिकार हो जाती है तो स्वयं ही अपने प्यार से दूर हो जाती है परंतु अपने सच्चे प्यार के लिए वह क्या क्या करती है उसकी वास्तविकता क्या है दिसंबर संजोग क्या था यह सब बड़ी रोमांचक स्थितियों के बीच खूबसूरती से पिरोये गए घटना क्रम में सिलसिलेवार बखान किया है लेखिका ने । सुंदर कल्पना एवं यथार्थ के संयोग से कहानी का ताना बन बुना गया है .

संग्रह की सभी कहानियां हमारे आप के जीवन से जुड़े हुए किस्से होने के साथ साथ वर्तमान सामजिक परिवेश ,उसमें व्याप्त बुराइयां एवं दोषों का दर्पण भी है जो पाठक के विचारण हेतु बहुत से प्रश्न भी छोड़ती है .

मेरी नज़र में एक अवश्य पढने योग्य पुस्तक , शेष आप पर छोड़ता हूँ . पढ़ें और निर्णय लें किन्तु पढ़ें ज़रूर

सादर,

अतुल्य

18.02.2023

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रचनाकार

Author

  • अतुल्य खरे

    B.Sc,LLB. उज्जैन (मध्य प्रदेश)| राष्ट्रीयकृत बैंक में वरिष्ठ प्रबंधक | Copyright@अतुल्य खरे/इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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