एक दिन पालक ने पूछा ये तो बतलाओ मुझे
कितना मेरा भाव है कुछ तो समझाओ मुझे
गर्मियों में भाव कितना ठंडी में क्या भाव है
खेत में कितना है मेरा घर में कितना भाव है
सज रहे बाजार मे अब मेरा कितना भाव है
जो सवारी जिंदगी है उसका कितना भाव है
कह रहा हूं जो सुनो तुम कहने का यह भाव है
जिसके हैं पालक हमेशा उसका बेड़ा पार है
सज रही बाजार हो या खेत और खलिहान हो
जो भी तेरा भाव है उसका न कोई भाव है
पालक जो घर में रहे तो खुशियों का ही भाव है
है नहीं पालक अगर तो हर जगह अभाव है
पालने में ही ये पालक आज बुड्ढा हो गया
सज गई जो पालकी गमगीन मौसम हो गया
है यहां जितने भी पालक सबका अपना भाव है
भाव में ही डूब कर सब को मेरा प्रणाम है
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