रोज तूफानों से लड़कर मैं यहा
बुझते दीपक को जलाता रहता हूं
उठता मन में ज्वार भाटा जो मेरे
उसमें ही दिन भर नहाता रहता हूं
उड़ ना जाऊं आज तूफा से कहीं
पैर अंगद सा जमाता रहता हूं
नाव जीवन की फंसी मझधार में
हौसला मन का बढ़ाता रहता हूं
प्रीत दिल में जो जगी है अब मेरे
दिल से ही उसको निभाता रहता हूं
झकझोरता है मन हिलोरे मार कर
मन को समझाता हमेशा रहता हूं
इच्छा को अपनी दबाकर ही यहां
प्यास जीवन की बुझाता रहता हूं
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