दहेज का व्यापार

शकुंतला चाय लेकर बैठक खाने में आई तो पति का खिला हुआ चेहरा देख कर हीं समझ गई कि शायद बात पक्की हो गई , तभी तो इतने खिलखिला रहे हैं वरना मुंह लटका कर ऐसे आते कि जैसे बेटी की शादी पक्की कर नहीं द्रोपदी का चीर हरण देख कर आए हों । साथ में रिश्तेदार नहीं होते तो आते हीं पूछ बैठती पर मन मसोसकर रह गई । मन तो बेचैन हो रहा था सब जानने के लिए पर क्या करती सबके सामने पति से पूछ भी तो नहीं सकती थी ना, सोची थी कि चाय पी कर जल्दी से मेहमान लोग चले जाते तो सब कुछ पूछ लेती पर चाय के बाद पति महोदय से नाश्ता बनाने का आदेश मिला तो व्यस्त हो गई नाश्ता बनाने में।

नाश्ता बनाते बनाते कई बार बैठक खाने के दरवाजे पर आकर पर्दे की आड़ से कान सटा देती ,शायद वही सब बात होती होगी जो वह सुनने के लिए उतावली हो रही थी पर बातचीत का प्रसंग ,धारा का मुख्य प्रवाह ना होकर किनारे किनारे हीं वह जाता । एक पैर रसोई में तो दूसरे पैर बैठक खाने के दरवाजे पर करते रहने से नाश्ता भी ठीक से नहीं बना। जले भुने नाश्ते देखकर आनंद बाबू पत्नी से मुखातिब होकर बोले- अरे भई ! यह क्या कुस्वादु नाश्ता बनाई हो ? कुछ मीठा बना लेती ,अरे बेटी का रिश्ता पक्का कर आया हूं कोई मेला घूम कर तो नहीं ?

पति के मुंह से रिश्ता पक्का होने की बात सुनकर शकुंतला के मन में जहां आनंद का सागर उमड़ने लगा तो वहीं चेहरे पर नारी सुलभ लज्जा का भाव झलकने लगा । संकुचा कर बोली फ्रीज से मिठाई ले आऊं ?

अरे नहीं भाभी रहने दीजिए, विशाल बाबू के यहां कम मिठाई खाए हैं जो यहां भी खाऊं । शकुंतला की ओर देखकर उसके छोटे ननदोई धीरेंद्र बाबू बोले ।

हां हां ले आओ ,थोड़ी सी मिठाई तो खानी हीं पड़ेगी । वहां खाए तो उसके घर का शुभ लाभ हुआ अपने घर में भी तो सगुन के लिए मुंह मीठा करना हीं पड़ेगा ना ? अपने बहनोई की ओर देखकर आनंद बाबू बोले ।

शकुंतला एक प्लेट में कुछ मिठाईयां लाकर टेबुल पर रखती हुई कनखी नजरों से पति की ओर देखकर अंदर चली गई ।

मेहमानों को विदा करके जब आनंद बाबू अंदर आए तो शकुंतला ने सवालों की झड़ी लगा दी । एक हीं सांस में इतने सारे सवालों को सुनकर आनंद बाबू हंसते हुए बोले – बस बस शकुन ,सांस भी ले लो ,बताता हूं भई सब बताता हूं , तुझे ना बताऊं तो और किसे बताऊंगा ।

पति की बात सुनकर उपर मेघा बादल की तरह अपने गोल गोल गाल फुला कर शकुंतला बोली- हां हां मुझे क्यों सुनाएंगे पहले गांव घर के सब को सुना आइए तब मुझे भी सुना दीजिएगा , मैं तो सिर्फ आप की लाडली बिटिया को मनाने के लिए हूं ना ? आप क्या जानने गए कि आपकी बेटी को मनाने के लिए मुझे क्या क्या नहीं करना पड़ा। साफ-साफ मना तो नहीं की है पर खुशी-खुशी राजी भी नहीं दिख रही है । आपको ठेस नां लगे इसलिए भारी मन से हां बोल दी है। आप से अपने मन की बात नहीं कह पाती है। लजाती भी है और आपका आदर भी करती है ।आपको दुखी नहीं करना चाहती इसलिए चुप है पर मुझे कह रही थी कि मम्मी आप पापा को समझाती, और कुछ दिन रुक जाते तो क्या हो जाता। मेरा भी सपना था कि पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊंगी फिर शादी करूंगी, पर पापा की जिद के आगे मैं बेबस हूं ।

शकुंतला की बात सुनकर आनंद बाबू शांत भाव से बोले फिर तुमने क्या कहा शकुन, क्या अनु मुझसे सचमुच रूठी हुई है?

मुझे भी समझ में नहीं आ रहा है कि जब हमारी बेटी हीं इस शादी से खुश नहीं है तो हम लोग खुश कैसे हो सकते हैं ? पर आप चिंता नहीं कीजिए, मैंने समझा बुझा कर कह दिया है कि देख बेटा , शादी तो आज ना कल करनी हीं पड़ेगी ,पर तुम्हारा पापा का हमेशा से सपना रहा है कि रिटायर होने से पहले अच्छा लड़का मिले तो अपनी एक बेटी की शादी कर लूं। ईश्वर की कृपा से बड़ा अच्छा लड़का मिला है । अच्छी नौकरी है, देखने में सुंदर है ,खानदान अच्छा है इसलिए पापा जिद कर रहे हैं । मान ले बेटा ! पापा का मान रख ले,,

कुछ नहीं बोली। बच्चों का मन टटोल कर उसे समझाना बुझाना कितना मुश्किल है मैं हीं जानती हूं । मीनी का भी फोन आया था बोल रही थी, पापा को समझाना कि सब ठीक से सोच समझकर सही लगे तभी कोई फैसला ले, जिंदगी का सवाल है । शादी ब्याह कोई मामूली खेल नहीं है छोटी सी भूल भी हो जाए तो जीवन भर पछताना पड़ता है ।

और जानते हैं , वह अपने बारे में क्या कह रही थी,,

क्या कह रही थी ?

कह रही थी कि अनु दी भोली है, पापा का दिल तोड़ना नहीं चाहती है इसलिए बिना लड़का देखें हीं मान गई, पर मैं ऐसा बिल्कुल नहीं करूंगी। मेरी शादी में आप लोग जल्दबाजी नहीं कीजिएगा जब तक मैं खुशी-खुशी तैयार ना हो जाऊं तब तक सोचना भी मत।

ठीक हीं तो कह रही है मीनी, सचमुच बड़ी भोली है मेरी बेटी । आज के जमाने में इतनी सीधी-सादी लड़की कहां होती है ,तभी तो नाज है मुझे अपनी बेटी पर । नसीब वाले को हीं ऐसी बेटी मिलती है। यही बात तो मैंने विशाल बाबू से कही- अपने हीं मुंह से अपनी बेटी की बढ़ाई क्या सुनाऊं, पर हीरा दे रहा हूं, जब आपके घर आ जाएगी तो खुद ब खुद आपको हीरे की परख आ जाएगी ।

और हां शकुन! मिनी की शादी में मैं बिल्कुल जल्दबाजी नहीं करूंगा ,सब कुछ दोनों बहनों पर छोड़ दूंगा। बस अनु की शादी हो जाए। ये शादी मेरी ख्वाइश हीं नहीं एक सपने जैसी है । हमेशा सोचता रहता था कि रिटायर होने से पहले एक बेटी की शादी हो जाए सो मानो मेरा सपना साकार हो रहा है । रिटायर होना सिर्फ नौकरी से रिटायर नहीं बल्कि जिंदगी से भी लोग रिटायर हो जाते हैं ,बस अपनों के बीच रहकर हंसी खुशी जिंदगी को गुजारने के सिवा और रह हीं क्या जाता है ।

शकुंतला हंस कर बोली ऐसा क्यों कहते हैं जी ,बूढ़े हो आपके दुश्मन अभी तो आप जवान लगते हैं । अच्छा अब कुछ बताइए भी, क्या क्या हुआ? सब ठीक-ठाक से मान गए या कुछ लेने देने की बात भी हुई?

आज के जमाने में बिना लेनी देनी के कथा कुटमैती कहां होती है शकुन , मुंह तो बड़ा लंबा चौड़ा खोल रखा था पर सबने समझाते हुए कहा कि लड़की पढ़ी-लिखी है, सुशील है , सुंदर है हो सकता है कल आपके बेटे से भी ऊंचे ओहदे पर चली जाए । और फिर दो बेटियां हीं तो हैं ,सारी संपत्ति तो इन्हीं दोनों बेटियों के लिए है । तब पर भी पच्चीस लाख में तय हुआ ।

क्या..पप्प… पच्चीस लाख…..?

हां शकुन ! पच्चीस लाख ,अरे अपनी जाति में नौकरी चाकरी करने वाले को हीं तो मुंह मांगा दहेज मिलता है वरना कौन पूछता है बेरोजगार लड़कों को । एकावन लाख तक बहुत लड़की वाले देने के लिए तैयार थे , वो तो अपनी अनु उसे पसंद आ गई इसलिए पच्चीस लाख में हीं मान गए ।

पर इतने रुपए आएंगे कहां से…?

रुपयों का इंतजाम तो कहीं ना कहीं से हो हीं जाएगा । अभी चार साल नौकरी बची है सर्विस लोन ले लूंगा, और भी कहीं ना कहीं से इंतजाम कर लूंगा पर डर तो इस बात का है कि कहीं से भी यदि अनु को इसकी भनक लग गई तो सब चौपट हो जाएगा । विचित्र लड़की है, खुश होने के बजाय नाराज होकर कहीं रिश्ता हीं ना तोड़ दे।

हां जी! यही डर तो मुझे भी है । बड़ी स्वाभिमानी लड़की है , बचपन से यही बोलती आ रही है कि कुंवारी रह जाऊंगी पर दहेज लेने वाले से शादी नहीं करूंगी ।

वैसे तो मैंने विशाल बाबू से कह दिया है कि लेन देन की बात हम दोनों के बीच हीं रहनी चाहिए । आपको भी आदर्श विवाह का यश मिलेगा और मेरी बेटी का भी स्वाभिमान बचा रहेगा पर यह बात हम्हीं दोनों के बीच तो नहीं हुई है ना ? दोनों पक्षों के मेहमानों को भी पता चल गया है । दीवारों के भी कान होते हैं कहीं बात आउट हो गई तो भारी मुश्किल होगी । पर तुम चिंता मत करो शकुन, फिर से मैं सब को समझा दूंगा कि दहेज की बात कोई अपने मुंह से ना निकाले । तुम भी किसी को मत बताना , मिनी को भी नहीं । अड़ोस पड़ोस से कोई भी पूछे तो कहना आदर्श कुटमैती हुई है ।

हां वो तो कहूंगी हीं ,और कोई गलत थोड़ी कहुंगी । अच्छे अच्छे घर के लोग बिना दहेज का मेरी बेटी को बहू बनाने के सपने देख रहे हैं । आप हीं को पता नहीं क्या हो गया जब से लड़का देखकर आए हैं तभी से रट लगा रहे हैं कि जो भी हो जाए इस कुटमैती को हाथ से निकलने नहीं देना है । अब गरजबन्हुं बनेंगे तो लड़का बाला का भाव बढ़ेगा हीं ना ।

यह बात भी तुम ठीक कह रही हो शकुन ,पर लोगों के सपने देखने ना देखने से क्या होगा, सपना तो वही साकार होगा जो मैंने देखा है । जबसे बेटी गोद में आइ तभी से मैंने एक सपना पाल रखा था कि भले हीं बहुत बड़ा खानदान ना हो , बहुत बड़ी नौकरी हो या ना हो पर लड़का सुंदर हो, सुशील हो ,संस्कारी हो ,दोनों की जोड़ी बेमेल ना लगे, देखने वाले देखते हीं रहे, सो मेरा सपना पूरा हो गया । जब से आकाश को देखा हूं अब से एक पल के लिए भी उसकी छवि मेरी आंख से नहीं निकली है । मैं जैसा चाहता था सब कुछ ऐसा हीं मिला फिर दहेज हीं देना पड़ा तो क्या हो गया आज भी सब कुछ इन्हीं दोनों बहनों का है कल भी जो रहेगा इन्हीं का रहेगा तो फिर आज हीं देने में क्या हर्ज है ।

कोई हर्ज नहीं है, बिल्कुल नहीं, पर आपकी जिद्दी, स्वाभिमानी लाडली को कौन समझाए बोलिए आप समझा पाएंगे ?

हां शकुन ! यही डर तो मन में घर कर रहा है ,कहीं सब किए धरे पर पानी ना फिर जाय । अच्छा सब भगवान पर छोड़ दो ईश्वर की जो मर्जी होगी वही होगा । कल ज्योतिषी जी को बुलाकर कुंडली भी मिलवा दुंगा और शादी का दिन भी तय कर लूंगा ।

बिना अनु को पूछे हीं….,,

अरे नहीं रे ,अनु से बात कर लूंगा । वैसे फरवरी में उसका एग्जाम खत्म हो जाएगा तो घर आ हीं जाएगी । मार्च में अच्छा रहेगा, तब तक मौसम भी अच्छा हो जाएगा । हमारे पूर्वजों का कहना है कि ” वर घर माघ कर” सो हर तरह से मार्च महींना हीं ठीक रहेगा । शादी और भगुवा दोनों का रंग एक

साथ सुहावन लगेगा ।

एग्जाम खत्म होते हीं मीनी के साथ अनु घर आ गई पर वह बहुत उदास लग रही थी । एक दिन संध्या समय शकुंतला और आनंद बाबू अनु को पास बैठा कर उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोले- बेटा क्या बात है , तुम इतनी उदास क्यों लग रही हो? क्या तुझे लड़का पसंद नहीं है ? या और कुछ मन में है तो बता दो अभी वक्त है हम मना कर देंगे।

नहीं पापा , ऐसी कोई बात नहीं है ।

आकाश अच्छा लड़का है , मिनी बराबर बात करती रहती है । आपका पसंद खराब हो हीं नहीं सकता है। आपके खरीदे हुए कपड़े तक को मैंने कभी नापसंद नहीं किया है । अब आप लोग मुझे इस घर से विदा कर देंगे इसीलिए थोड़ा उदास हूं ।

अरे पगली ! ऐसा सपने में भी मत सोचना कि तुम इस घर से विदा हो जाएगी । यह घर हमेशा से तुम्हारा है, हां बस एक और घर जुट जाएगा । एक घर ,एक परिवार से जुड़ जाएगी , यही तो संसार का नियम है । इतना सुंदर लड़का , इतना अच्छा परिवार मिला है फिर भी तुम उदास लगेगी तो हमें खुशी कैसे मिलेगी । कभी तूं भी आकाश से बात कर ले, बात करेगी तभी तो एक दूसरे को ठीक से समझ सकोगी।

अनु धीरे से बोली ठीक है पापा कर लूंगी।

आखिर वह पल भी आ गया जिसका आनंद बाबू को बेसब्री से इंतजार था । सारी तैयारियां पूरी हो गई। विवाह स्थल की सजावट ,मंडप की सुंदरता इंद्रलोक को मलिन कर रही थी । दुल्हन के रूप में सजधज कर तैयार अपनी लाडली बिटिया को देखकर आनंदबाबू का मन मोर की तरह नाच रहा था तो आंखों से सावन का मेघ भी बरस रहा था । कहीं कोई देख ना ले इसलिए अंगोछे से बार बार आंसू पोछ लेते थे । शकुंतला बेचारी शादी के विध व्यवहार मेंऔर घर आए मेहमानों का स्वागत करने में इतनी व्यस्त थी कि उसे अपने तन की भी सुध ना थी ।

बारात नगर में प्रवेश कर गई। वर-वधू दोनों पक्षों से होने वाले डेढ़ पटाखों की आवाज से आसमान गूंज उठा। तरह-तरह की फुलझड़ियां एवं आकाशदीप से आसमान जगमगा उठा। सभी लोग अपने अपने यथोचित स्थान पर बैठकर सुमधुर संगीत का आनंद लेने लगे । बीच-बीच में चाय नाश्ते एवं परिचय पात भी होता रहा। महिलाएं दूल्हा देख कर आनंद मगन हो रही थी । अपने आप को अप्सरा समझने वाली सुंदर-सुंदर लड़कियां दूल्हे की सुंदरता देखकर लाजोनी की तरह सिकुड़ने लगी ।

गीत संगीत एवं विविध प्रकार के स्वागत सत्कार के पश्चात वरमाला का समय आया। सजी-धजी महिलाओं के बीच धीरे धीरेअपने सुकोमल चरणों को आगे बढ़ाती हुई दुल्हन बनी अनु तारिकाओं से गिरी पूनम का चांद की तरह दमक रही थी । वर वधु की सुंदर, अलौकिक युगल जोड़ी देखकर सभी मंत्रमुग्ध हो रहे थे । महिलाएं मांगलिक गीत गाने लगी । वरमाला के लिए दूल्हा-दुल्हन को मंच पर आगे लाया गया । दुल्हन के गले में वरमाला डालने के लिए आकाश ने जैसे हीं माला हाथ में लिया कि अनु ने उसका हाथ पकड़कर धीरे से बोली-थोड़ी देर रूक जाइए ,अभी एक रस्म और बाकी है, पहले इसे पूरा कर लेने दीजिए । फिर वह मीनी से अपने पापा को बुलाने कहकर आकाश से भी अपने पिता को बुलाने के लिए बोली ।

आकाश अनु की ओर देख कर मुस्कुराते हुए अपने भाई से पापा को बुलाने कहकर अनु के बगल में खड़ा हो गया।

विशाल बाबू और आनंद बाबू समझ नहीं पा रहे थे कि वरमाला का रस्म के समय उन्हें क्यों बुलाया जा रहा है। उनके मन में तरह-तरह की आशंकाएं जन्म लेने लगी। उनकी धड़कने तेज हो गई । जोर-जोर से धड़कते हुए कलेजे को थाम कर ईश्वर का नाम लेते हुए दोनों मंच पर आकर खड़े हो गए । उनकी नजरें झुकी हुई थी । कहीं ना कहीं मन के किसी कोने में अनहोनी का डर सताने लगा ।कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे।

दोनों को चुपचाप खड़े देखकर अनु बोली- पापा !आज तक आपने मुझसे कुछ भी नहीं छिपाए हैं, मम्मी से भी पहले हर बात आप मुझे हीं बताते हैं, आज भी सच सच बता दीजिए । आप जीवन में कभी झूठ नहीं बोले हैं आज भी मत बोलिएगा ।

आप दोनों अपनी अपनी संतान के सर पर हाथ रखकर सच-सच बताइए कि हमारा विवाह सचमुच आदर्श विवाह है? क्या आपने दहेज की कोई लेन-देन नहीं किया है?

दोनों को अपनी संतान के आगे नतमस्तक हुए चुपचाप खड़े देखकर आकाश बोले – हां पापा ,सच-सच बताइए ,अनु के सवाल का उत्तर दीजिए ,इस तरह आप लोग मौन साधे खड़े रहेंगे तो हमें विश्वास हो जाएगा कि यह आदर्श विवाह नहीं है । आप लोग हमसे झूठ बोलकर दहेज का लेनदेन किए हैं , फिर तो यह विवाह नहीं होगा हम बिना शादी किए हीं लौट जाएंगे ।

अनु और आकाश की बात सुनकर विशालबाबू तो कुछ नहीं बोल पाए पर आनंद बाबू अपने धड़कते हुए कलेजे को धाम कर बोले- बेटा क्यों तुम लोग मंगल में अमंगल कर रहे हो ? थोड़ा बहुत शादी में खर्च करने के लिए दे हीं दिए तो कौन सा अपराध हो गया। आखिर हम लोग अपने बच्चों के लिए हीं तो कमाते हैं ।

हां बेटा ! आनंदबाबू ठीक कह रहे हैं, हम लोगों में दहेज उहेज की कोई लेन-देन नहीं हुई है। सगुन के नाम पर जो कुछ भी दिए मैंने मना नहीं किया, भला हमें किस चीज की कमी है जो दहेज मांगू मुझे तो बस बहू चाहिए ।

अपने पापा और आकाश के पिता की बात सुनकर अनु का गुलाबी चेहरा लाल हो उठा ।वह सख्त आवाज में बोली- वाह ! कितने झूठ बोलेंगे आप लोग ,सगुन के नाम पर कुछ रुपए ….. बोलते बोलते उसकी आंखें डबडबा गई ।आंसू पोछकर अवरुद्ध कंठ से फिर बोलने लगी- पापा बड़े लाड प्यार से पाला है आपने ,कभी झूठ ना बोलने की शिक्षा भी आप हीं से सीखी हूं ,आज आप कैसे इतना बड़ा झूठ बोल रहे हैं ,सगुन के पैसे… मुझे पता है, हाट बाजार में बिकने वाली महंगी चीजों की तरह मोलभाव हुआ है, पचास लाख से शुरू होकर दहेज का व्यापार पच्चीस लाख पर तय हुआ और आप लोग कह रहे हैं कि बिना मांगे सगुन के पैसे…

माना कि आपने अपनी बेटी की खुशी के लिए सबसे महंगा तोहफा खरीदा पर अपनी हीं बेटी का स्वाभिमान बेचकर ? जिस स्वाभिमान की नींव पर खड़ी होने के लिए आपने खुद सिखाया है उसे हीं ढाह कर ? क्यों पापा…..?

अंकल तो ब्लॉक की काली कमाई के आदि होंगे पर आप ?आप तो एक शिक्षक हैं ,जहां के ईंट ईंट में सादगी, सच्चाई, ईमानदारी का रंग भरा होता है, आपने कैसे उस पर दाग लगा दिया…?

अपनी आंखों से आंसू पोछकर फिर अनु आकाश के पिता की ओर मुखातिब होकर बोली-कहना तो आपको पापा चाहती थी ,अपने पापा से भी ज्यादा मान आदर के साथ मगर इस दहेज का व्यापार में नहीं कहा पा रही हूं । माना कि दुनियां में अभी भी बहुत लोग दहेज ले देकर अपने बच्चों की शादी करते हैं ,हो सकता है उनके बच्चे इसी में अपनी खुशी ढूंढते होंगे पर आपके बच्चे तो नहीं , हमारी खुशी तो इस आग में जलकर राख हो गई । मुझे नहीं चाहिए ये लाखों के गहने ये महंगे महंगे कपड़े क्या करूंगी ये सब, चार आने का मंगलसूत्र भी लेकर आते ना तो गर्व से सर ऊंचा हो जाता ,पर आप लोगों ने तो अपनी नकली खुशी में हमारी असली खुशी की आहुति दे दी सब भस्म हो गया…..।

जब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ती थी ना तभी “दहेज की आग ” नाटक में खुद को जलाने का अभिनय किया था आज सचमुच वह अभिनय चरितार्थ हो गया ,मेरा जीवन का हिस्सा बन गया। मेरा अभिनय देखकर सबकी आंखें नम हो गई थी ,पापा घंटों तक रोते रहे, आज क्या हो गया ? असल जीवन का अभिनय करते समय आप लोगों ने सचमुच मुझे इस दहेज की आग में जला दिया । माफ कीजिएगा अपने स्वाभिमान का गला घोट कर जीवन की खुशियां नहीं खरीद पाउंगी , मैं ये शादी नहीं कर सकती ……।

आकाश भी अनु का समर्थन करता हुआ बोला हां मैं भी इस दहेज के व्यापार का हिस्सा नहीं बनूंगा….।

आनंद बाबू दोनों हाथों से अपना माथा पकड़ कर वहीं बैठ गए, उनकी आंखों से धाराप्रवाह आंसू बहने लगे। आंसुओं के प्रचंड प्रवाह में उसे अपना सपना टूट कर बिखरता हुआ नजर आने लगा ।

विशाल बाबू अपने सर से पगड़ी उतारकर अनु के आगे रखकर कहने लगे- मुझसे भारी भूल हो गई, मुझे माफ कर दो मेरे बच्चे …..मैं तुम्हारी सौगंध खाकर कहता हूं कि मैं दहेज के सारे पैसे वापस कर दूंगा । फिर आनंद बाबू का हाथ पकड़कर उठाते हुए बोले उठिए हम शर्मिंदा नहीं बल्कि गौरवान्वित हो रहे हैं , हमारे बच्चों ने जो हमें आदर्श ,स्वाभिमान एवं सच्ची इंसानियत का पाठ पढ़ाया है उससे हम गदगद हो रहे हैं ,अपने बच्चों की पाठशाला में पढ़कर हमें भी जीवन का आदर्श सीखने का सौभाग्य मिला है। धन्य हैं हम ऐसी संतान पाकर.…..।

आनंद बाबू अपने आंसू पोछकर अनु का हाथ आकाश के हाथ में रख कर बोले – मेरा सपना अधूरा था अब पूरा हो गया ,अपने जीवन में आगे बढ़ते हुए हमेशा खुश रहना मेरे बच्चे…..।

महिलाएं झूम झूम कर फिर से मांगलिक गीत गाने लगी।

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रचनाकार

Author

  • अरुण आनंद

    कुर्साकांटा, अररिया, बिहार. Copyright@अरुण आनंद/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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