ट्विन टावर यदि बोल पाता तो कहता

ट्विन टावर यदि बोल पाता तो कहता-
पलक झपकते ही मुझे जमींदोज करने वालों,
कल तुम भी शामिल थे मुझे बनाने में।
मुझे ये तो नहीं पता कि भारत में अब भ्रष्टाचार की परिभाषा क्या है?
लेकिन आज कुछ लोग मुझे देख कर कह रहे हैं –
देखिए भ्रष्टाचार की इमारत का विध्वंस !
अरे मेरे ऊपर राजनीति करने वालों,
मुझे क्यों बनने दिया और क्यों मुझे गिरा दिया।
जब मैं गिरा तो मेरे गिरने से जो मलवा बना,
वो मलबा केवल ईंट,रेत, सीमेंट का मलबा नहीं था,
वो मलबा था उन सपनों का जो मेहनती हाथों ने कभी देखा था,
वो मलबा था उन सपनों का जो एक मां ने अपने इकलौते बेटे के साथ रहने के लिए देखा था।
वो सब सपने मेरे मलबे के साथ आज कहीं दफन हो गए।
9 साल लगे मुझे बनाने में और ध्वस्त करने में 9 सेकेंड से भी कम समय,
मेरी रगों में तुमने 3700 किलो विस्फोटक का प्रयोग किया!
इसलिए मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा,
अपने सूक्ष्म रूप में तुम्हारे इस वातावरण में  ही रहूंगा और तब तक रहूंगा जब तक यह इंसान अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए प्रकृति को सताना नहीं छोड़ देता।
कहीं बाढ़ है , कहीं प्रदूषण है, यही चारों तरफ हाहाकार है।
शर्म कर इंसान ये प्रकृति कहती है तुझे-
की बहुमंजिला इमारतों से झांकते हुए इंसान की हालत अब पोल्ट्री फार्म के मुर्गो जैसी हो गई है।
जिसे सांस लेने के लिए भी खिड़की से सर बाहर करना पड़ता है।

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रचनाकार

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  • आशीष कुमार

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